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पहिला अध्ययन -~~()भिक्षा
श्री सुधर्मास्वामीने कहा
सब विषयों में रागद्वेष से रहित हो कर अपने कल्याण में तत्पर रह कर सदा संयम से रहने में ही भिक्षु और भिक्षुणी के श्राचार की सम्पूर्णता है। भिक्षा में कर्मबन्धन का कारण विशेष सम्भव है. इस लिये भगवान् महावीर ने इस सम्बन्ध में बड़ी गम्भीर शिक्षा दी है। उसको मैं कह सुनाता हूँ, तुम सब सुनो । [१]
भिक्षा के लिये कहाँ जावे ? भिक्षु, ( सर्वत्र इस शब्द में भिन्नु और भिक्षुणी दोनों को लिया गया है) उग्रकुल (अारक्षक क्षत्रिय ), भोगकुल (पूज्य-श्रेष्ठ कुल ), राजन्य कुल ( मित्रराजाओं के कुल ), क्षत्रिय कुल, इक्ष्वाकु कुल (श्री आदीश्वर का कुल ), हरिवंशकुल (श्री नेमिनाथ का कुल ), और ग्वाल, वैश्य, नाइ (मूल में · गंडाग'). सुतार और बुनकर आदि के अतिरस्कृत और अनिंदित कुलों में भिक्षा मांगने जावे। [१]
भिक्षा मांगने कहाँ न जावें? परन्तु चक्रवर्ती आदि क्षत्रिय, राजा, ठाकुर, राजकर्मचारी और राजवंशियों के यहां से भिक्षा न ले, फिर भले ही वे शहर में रहते
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