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आचारांग सूत्र
कहीं राग नहीं रखता । प्रिय और अप्रिय शब्द और स्पर्शी सहन करने वाला वह विधेकी, जीवन की तृष्णा से निर्वेद पाता है और संयम का पालन करके कर्भ शरीर को खखेर देता है । [१८-६६]
वीर पुरुष ऊंचा, नीचा और तिरछा सब ओर का सब कुछ समझ कर चलता है। वह हिंसा आदि से लिप्त नहीं होता । जो अहिंसा में कुशल है और बंध से मुक्ति प्राप्त करने के प्रयत्न में रहता है, वही सच्चा बुद्धिमान है। वह कुशल पुरुष संयम का प्रारंभ करता है पर हिंसा आदि प्रवृत्तियों का नहीं । [१०२-१०३ ]
जो एक (काय) का प्रारम्भ (हिंसा) करता है, वह छःकाय के दूसरे का भी करता है । कर्भ को बराबर समझ कर उसमें प्रवृत्ति न करे । [१७-१०१]
'यह मेरा है' ऐसे विचार को वह छोड देता है, वह ममत्व को छोड़ देता है। जिसको ममत्व नहीं है, वही मुनि सच्चा मार्गदृष्टा है । [१८]
संसारी जीव अनेक बार ऊँच गोत्रमें आता है, वैसे ही नीच गोत्रमें जाता है। ऐसा जान कर कौन अपने गोत्र का गौरव रखे, उसमें आसक्ति रखे या अच्छेबुरे गोत्र के लिये हर्ष-शोक करे ? [७७]
लोगों के सम्बन्ध को जो वीर पार कर जाता है, वह प्रशंसा का पात्र है । ऐसा मुनि ही 'ज्ञात' अर्थात् प्रसिद्ध' कहा जाता है । मेधावी पुरुष संसार का स्वरूप बराबर समझ कर और लोकसंज्ञा (लोक-प्रवृत्ति) का त्याग करके पराक्रम करे, ऐसा मैं कहता हूं। [१००, १८] .
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