________________
पर किया
[ १२३
आदि छाती तथा गले के श्राभूषण और मुकुट, माला या सोने की कंठी आदि उसको पहनावे, तो वह उसकी इच्छा न करे उसको स्वीकार करे ।
और न
इसी प्रकार, भिक्षु को बगीचे या उद्यान में ले जाकर, उसके पैर आदि दाबे - मसले... आदि तो वह उसकी इच्छा न करे और न उसको स्वीकार करे । [ १७२]
कोई गृहस्थ शुद्ध या श्रशुद्ध वचन (मंत्र) के बल्ल से, अथवा कंदमूल, छाल या हरी खोद कर बीमार भिक्षु की चिकित्सा करने लगे तो वह उसकी इच्छा न करे और न उसको स्वीकार करे | प्रत्येक मनुष्य अपने किये का फल भोगता है, ऐसा समझे । [ १७३ ]
चौदहवाँ अध्ययन
Jain Education International
—(•)—
अन्योन्य क्रिया
GGBOSS
[ पर क्रिया अध्ययन में जो क्रियाएँ गृहस्थ भिक्षु को करता था उन्हीं को भिक्षु अन्योन्य एक दूसरे को करे तो उनके सम्बन्ध में भी पर क्रिया अध्ययन के अनुसार उसकी इच्छा न करे और न उसको
स्वीकार करे । ] [ १७४ ]
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org