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________________ - - - पात्र [१११ - - ४. फैंक देने योग्य जिसको कोई भिखारी याचक लेना न चाहे ऐसा ही पात्र मागे या कोई दे तो ले ले । इनमें से कोई एक नियम लेने वाला दूसरे की अवहेलना न करे (भिक्षा अध्ययन के सूत्र ६३, पृष्ट ८३ के अनुसार )। इन नियमों के अनुसार पात्र मांगने जाने वाले भिन्तु को गृहस्थ देने का वचन-म्यान दे अथवा :पात्र तेल, घी आदि लगाकर या सुगन्धित पदार्थ, ठंडे या गरम पानी से साफ करके दे तो (वस्त्र अध्ययन के सूत्र १४६, पृष्ट १०६ के अनुसार) उसको सदोष जान कर न ले । ____यदि गृहस्थ भिक्षुको कहे कि, 'तुम थोड़ी देर ठहरो, हम भोजन तैयार करके पात्र में आहार भर कर तुमको देंगे; भिक्षु को खाली पात्र देना योग्य नहीं है ।' इस पर भिक्षु पहिस्ते ही मना कर दे और इतने पर भी गृहस्थ वैसा करके ही देने लगे तो वह न ले। ___ गृहस्थ से पात्र लेने के पहिले भितु उसे देख भाल ले सम्भव है, उसमें जीव जन्तु, वनस्पति श्रादि हो।। . (आगे, वस्त्र अध्ययन के सूत्र १४७-१४८, पृष्ट १०७-१०८ के अनुसार सिर्फ सुखाने की जगह 'पात्र यदि तेल, घी आदि से भरा हो तो निर्जीव जमीन देख कर वहां उसे सावधानी से साफ़ कर ले,' ऐसा समझें।) [११२] गृहस्थ के घर भिक्षा लेने जाते समय पात्र को पहिले देख भाल कर साफ कर ले जिससे उसमें जीवजन्तु या धूल न रहे । [१५३] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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