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________________ आचारांग सूत्र भिक्षु भाषा के इन चार भेदों को जाने-सत्य, असत्य, कुछ सत्य कुछ असत्य, न सत्य और न असत्य । [ १३२ ] __ इन चारों प्रकार की भाषाओं में से जो कोई सदोष, कर्मबंध कराने वाली, कश, कड़वी, निष्ठुर, कठोर, अनर्थकारी, जीवों का छेदन-भेदन और उनको प्राधात परिताप करने वाली हो, उसे जान कर न बोले । परन्तु जो भाषा सत्य, सूचम (ऊपर से असत्य जान पड़ती है, पर वास्तव में सत्य होती है) न सत्य या न असत्य और उपरोक्त दोषों से रहित हो, उसी को जानकर बोले । [ १३३ ] भिनु किसी को बुलाता हो और यदि वह न सुने तो उसको अवज्ञा से चांडाल, कुत्ता, चोर, दुराचारी, झूठा आदि सम्बोधन न करे, उसके माता पिता के लिये भी ये शब्द न कहे; परन्तु ' हे अमुक, हे आयुष्मान् , हे श्रावक, हे उपासक हे धार्मिक, हे धर्मप्रिय, ऐसे शब्द से सम्बोधन करे, स्त्री को सम्बोधन करते समय भी ऐसा ही करे। [ १३४] _ भिन्नु आकाश, गर्जना और बिजली को देव न कहे। इसी प्रकार देव बरसा, देव ने बर्षा बन्द की, अादि भी न कहे। और वर्षा हो या न हो, सूर्य उदय हो या न हो, राजा जीते या न जीते, भी न कहे। आकाश के लिये कुछ कहना हो तो नभोदेव या ऐसा ही कुछ कहने के बदले में 'अंतरिक्ष' कहे। देव बरसा ऐसा कहने के बदले यह कहे कि बादल इकट्ठे हुए, या बरसे । [ १३५] भिन्तु या भिक्षुणी हीन रूप. देखकर उसको वैसा ही न कहे । :: जैसे, सूजे हुए पैर वाले को 'हाथीपग्गा' न कहे, कोढ़ वाले को 'कोढ़ी, न कहे, अादि । संक्षेप में, जिसके कहने पर सामने वाला मनुष्य नाराज हो, ऐसी भाषा जान कर न बोले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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