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________________ १०.] प्राचारांग सूत्र वह कुछ न करे। छेद में से पानी को आते देखकर या नाव को डगमगाते देखकर नाव वाले को जा कर ऐसा न कहे कि, 'यह पानी भरा रहा है। इसी प्रकार इस बात को मन में धोटता भी न रहे। परन्तु व्याकुल हुए बिना तथा चित्त को अशान्त न करके, अपने को एकाग्र करके समाहित करे। वह नाववाला श्राकर उसे कहे कि, 'यह छत्र पकड़, यह शस्त्र पकड़; इस लड़के लड़की को दूध या पानी पिला;' तो वह ऐसा न करे। इस पर चिढ़ कर कोई ऐसा वहे कि, यह भिक्षु तो नाव पर बेकाम बोझा ही है इस लिये इसको पकड़ कर पानी में डाल दो।' यह सुनकर वह भिक्षु तुरन्त ही भारी कपड़े अलग करके हलके कपड़े शरीर और मुँह से लपेट ले; और यदि वे क्रूर मनुष्य उसका हाथ पकड़कर पानी में डालने पावें तो वह उनको कहे कि, 'श्रायुष्यमान गृहस्थ ! हाथ पकड कर मुझे फैकने की, जरूरत नहीं मैं तो खुद ही उतर जाता हूँ। इतने परभी वे उसको फैंक दें तो भी वह अपने चित्त को शान्त रखे, उनका सामना न करे परन्तु व्याकुल हुए विना सावधानी से उस पानी को तैरकर पार कर जावे । (१२०-१२१). भितु पानी में तैरते समय हाथ-पैर आदि न उछाले, गोते न खावे, क्योंकि, ऐसा करने से पानी नाक-कान में जाकर यों ही नष्ट होता है । भिक्षु पानी में तैरते थक जाय ते वह अपने सब या कुछ कपड़े अलग करदे, उनसे बंधा न रहे । किनारे पर पहुंचने पर शरीर को पूछे, रगड़े या तपावे नहीं; पर पानी के अपने आप सूखने पर उसको पोंछ कर आगे चले। भिक्षु और भिक्षुणी के प्राचार की यही सम्पूर्णता है कि सब विषयों में सदा राग द्वेष रहित होकर अपने कल्याण में तत्पर रह कर सावधानी से प्रवृत्ति करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003238
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherJain Shwetambar Conference Mumbai
Publication Year1994
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, & agam_acharang
File Size6 MB
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