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तीसरा अध्ययन
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विहार
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चातुर्मास
भिक्षु या भिक्षुणी ऐसा जानकर कि अब वर्षा ऋतु लग गई है, पानी बरसने से जीवजन्तु पैदा हो रहे हैं, अंकुर फूट निकले हैं और रास्ते जीवजन्तु, वनस्पति श्रादि से भर गये हैं, इस कारण ठीक मार्ग नहीं दिखाई पड़ता तो वह गांव-गांव फिरना बन्द करके संयम से एक स्थान पर चातुर्मास ( वर्षावास ) करके रहे । [ १११]
जिस गांव या शहर में बड़ी स्वाध्याय: भूमि ( वाचन-मनन के लिये एकान्त स्थान ) न हो, मल-मूत्र के लिये जाने को योग्य स्थान न हो, सोने के लिये पाट, पीठ टेकने का पटिया, बिछौना, स्थान और निर्दोष श्राहार- पानी का सुभीता न हो और जहाँ अनेक श्रमण ब्राह्मण, भिखारी श्रादि श्राने से या श्राने वाले होने से बहुत भीड़ भाड़ होने के कारण जाना थाना स्वाध्याय, ध्यान आदि में कठिनाई पड़ती हो तो उसमें भिक्षु चातुर्मास न करे परन्तु जहां ऐसा न हो वहां सावधानी से चातुर्मास करे । [ ११२]
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वर्षाऋतु के चार मास पूरे होने पर और हेमन्तऋतु के भी पांच दस दिन बीत जाने पर भी, यदि रास्ते अधिक घास और जीवजंतु वाले हो, लोगों का आना जाना शुरू न हुआ हो तो भिक्षु गांव-गांव विहार न करे । पर रास्ते पर जीवजन्तु, घास कम हो गये
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