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________________ 32 उस मार्ग का स्वयं अवलम्बन लेकर सही मार्ग जाना और प्राप्त किया है तत्पश्चात् जनता जनार्दन के सम्मुख बतलाया है जो इस मार्ग के स्वयं पथगामी है वे वीतराग सर्वदर्शी सर्वज्ञ तीर्थकर देव ही हैं। उन्हें अरिहंत, जिन, जिनेश्वर, जिनेन्द्र, अर्हत्, अरहंत, अरुहंत भी कहते हैं। इसके सिवाय अन्य कोई नहीं है । अरिहंत किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है । अरिहंत आत्मा की एक ऐसी अवस्था है जो काम-राग-द्वेषादि आभ्यंतर तथा बाह्य शत्रु ओं पर विजित हैं। अन्य किस भी व्यक्ति (ईश्वर) में ऐसी योग्यता नहीं है ।। कहा भी है किये स्त्री-शास्त्राक्ष-सूत्रादि, रागाधङ्क कलंकिताः । गिग्रहानुग्रहपरास्ते देवाः स्युनमुक्तये ॥6॥ नाट्याट्टहास-संगीताच पप्लव विसंस्थलाः । लम्भयेयुः पर्व शांत, प्रपन्ना-प्राणिनः कथम् ॥7॥ जो देव (ईश्वर) स्त्री-कामिनी, शस्त्र-त्रिशूलादि, अक्षसूत्र-जपमालादि, रागद्वेष आदि चिन्हों से कलंकित हैं। निग्रह बध बन्धनादि और अनुग्रह-वरप्रदानादि देने वाले हैं। ऐसे देव (अवतार आदि) मुक्ति प्राप्त करने में निमित्तभूत नहीं हो सकते । जो नाट्य, अट्टाहास (तांडवनाच) और संगीत आदि उपप्नवों-उपद्रवों से स्वयं अस्थिर चित्त वाले हैं वे आश्रित जनों को उपद्रव-रहित मुक्ति-कैवल्य आदि शब्दों से वाच्य ऐसे परमशांति स्वरूप मुक्ति को प्राप्त कराने में कैसे सहयोगी हो सकते हैं ? ब्रह्मा, विष्णु, शकर कृष्ण आदि सर्वज्ञ भी नहीं हैं, वीतराग भी नहीं हैं उन का स्त्रियों का संग राग और काम होने का चिन्ह हैं, शस्त्रादि उनके द्वेष के चिन्ह हैं, जपमाला आदि अज्ञान के चिन्ह हैं तथा कमंडल आदि अशीच चिन्ह हैं । रुद्र को -गौरी, शिव को पार्वती, ब्रह्मा को सावित्री, विष्णु को लक्ष्मी, इन्द्र को रति, सूर्य को रत्नदेवी, चन्द्र को रोहिणी, व हस्पति को तारा, अग्नि को स्वाहा, काम को रति, राम को सीता, कृष्ण को राधिकादि गोपियां, श्राद्ध देवता को घूमोर्णा इत्यादि सब देव स्त्रियों सहित हैं, सब को शस्त्रों का सम्पर्क हैं। सब मोह से मोहित हैं ऐसे देव जिन्होंने स्वयं मोह, राग-द्वेष कामादि को नहीं जीता वे सर्व कर्मक्षय रूप मुक्ति प्रदाता कैसे हो सकते हैं ? रागोऽङ्गना संगम मनानुमेयो, द्वेषो द्विषद्दारणमनाहेतिगम्यः । मोहा कुवृत्तागमदोषसाध्यो नो यस्य देवः स चैवमहन् । स्त्री का संग हो तो समझना चाहिये कि इस में र ग और काम है। हाथ में हथियार और आयूध (शास्त्रास्त्र) हो तो समझना चाहिए कि इस में द्वेष है। हाथ में जपमाला हो तो समझना चाहिए कि अज्ञानी है श्री अहंन् (तीर्थङ्कर) देवो में इन में से एक भी दोष नहीं है। अर्थात् उपर्युक्त चिन्हों वाले सभी रागी-वेषी मोही. कामी -अज्ञानी होने से संसारी प्राणियों के लिये कर्म-बन्धन से मुक्त कराने में सहयोगी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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