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कोई देख पायेगा। अतः जिस ईश्वर के स्वरूप को जानने तथा साक्षात् करने का सामर्थ्य मानव शक्ति से परे है उस का चिन्तन, मनन, अनुभव करना भी मानव के लिए एकदम असंभव है। ऐसे अरूपी ईश्वर का आचरण रूप चारित्र भी साधक के समक्ष नहीं है जिस का अनुकरग करके संसारी जीव जन्म-जरा-मृत्यु से छुट कर शाश्वत सुख (मोक्ष) की प्राप्ति कर सके। तथा सदाकाल अरूपी रहने वाला ईश्वर उपदेश द्वारा आत्मकल्याण के मार्ग का दर्शन भी नहीं करा सकता। ऐसे ईश्वर का कोई चारित्र तथा उपदेश न होने से संसारी प्राणी किस का अनुकरण-आचरण करके कल्याण साध सके ? यानी विश्व के सामने इस ईश्वर का न तो कोई ऐसा चारित्र है और न ही कोई उपदेश (मार्गदर्शन) है जिस के संवल से संसारी आत्मा अपना कल्याण कर सके । आदर्श के सामने हुए बिना ऐसे ईश्वर की उपासना से न तो प्राणी का आत्मकल्याण ही संभव है और न ही मोक्ष संभव है।
(3) तीसरा वर्ग-अरूपी ईश्वर के अवतारवादियों का हैं । इस वर्ग की मान्यता है कि अनादि-अनन्त, अरूपी, सर्वव्यापक ईश्वर बिना कर्मों के ही संसारीप्राणी के रूप में मां के गर्भ से जन्म लेकर जगतीतल पर शरीरधारण करके अवतार -लेता है और भक्तों को दुःखों से छुटकारा दिलाकर अपनी लीला समाप्त करके शरीर का त्यागकर वापिस अरूपी होकर अपने स्वरूप में स्थिर हो जाता है। ऐसी कल्पना-मात्र से माना हुआ ईश्वर जिसका जगत में कोई अस्तित्व ही नहीं है, न ही 'जिसका कोई स्वरूप है, उसकी उपासना कैसे संभव हो सकती है ? यदि ऐसे ईश्वर का असित्व मान भी लिया जावे तो वह संसारी आत्मा को कर्म बन्धन से मुक्ति रूप शाश्वत सुख प्राप्त कराने का साधन कैसे बन सकता है ? क्योंकि एक शाश्वत अरूपी अवस्था से च्युत होकर अशाश्वत शरीर-धारण कर अवतार लेकर नीची अवस्था में आकर संसारी बने और वापिस लौट कर मूल स्वरूप को प्राप्त कर अरूपीसर्व-व्यापक अवस्था को प्राप्त करे, ऐसा ईश्वर संसारी जीव को कर्म-बन्धनों से छुटकारा पाने का जन्म-जग-मृत्यु, चार गतियों, चौरासी लाख जीव योनियों से छुटकारा दिलाने के लिये कोई आदशं उपस्थित नहीं कर पाता। अनादि काल से जन्म-मरण के चक्र में भटकते हुए विडम्बनाओं से पीड़ित जीव को छुटकारा पाने के लिए और शाश्वत सुख को प्राप्त कराने के लिए उसे ऐसे ही मार्गदर्शन का आदर्श चाहिये कि जिसने स्वयं अपने आचरण से संसार के दुःखों से छुटकारा पाकर शाश्वत सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति की हो। उपर्युक्त स्वरूप वाले ईश्वर द्वारा ऐसा चारित्र अथवा आदर्श उपस्थित नहीं होता जिनका अनुकरण करके वह सदा के लिए कम बन्धन से छुटकारा पाकर शाश्वत सुख-रूप मुक्ति को प्राप्त कर सके। ऐसे अवतारी ईश्वर के उपासकों ने भी अपने माने हुए ईश्वर के चारित्र को लीलामात्र ही माना है। संसारी जीव का कल्याण तो ऐसे ईश्वर को उपासना से ही संभव है जिसने
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