________________
2.
ईश्वर तथा प्रात्मा की मान्यताएं
मोक्षमार्ग को सतत् प्रवाहमान रखने एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये श्री जिनेश्वर मु की प्रतिमा (मूर्ति) तथा उसकी पूजा-उपासना का क्या महत्व और अनिवार्यता ? इस पर प्रकाश डालने से पहले ईश्वर तथा आत्मा की मान्यता के सम्बन्ध में श्व में विद्यमान विचार धाराओं पर कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है।
विश्व में दो विचार धाराएं हैं। अनीश्वरवादी और ईश्वरवादी।
1-अनीश्वरवादी विचारधारा को मान्यता है कि विश्व में चैतन्य-आत्मा,. -बन्धन, पुनर्जन्म, कर्म मुक्ति, ईश्वर आदि कुछ भी नहीं है । जीवात्मा कोई स्वतंत्र व नहीं है । पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश इन पांच जड़ तत्त्वों (भूतों) के ल जाने से शरीर की रचना होती है और इन पांच भूतों के मेल से उत्पन्न शरीर विकार पैदा होकर एक शक्ति उत्पन्न हो जाती है उसे जीवात्मा की संज्ञा दी
है। जैसे कुछ द्रव्यों को मिलाने पर मद्य (शराब) बन जाती है और उस में दक शक्ति पैदा हो जाती है, उसी तरह पाँच भूतों के मिलाप से शरीर में जो चार शक्ति पैदा होती है वही आत्मा कही जाती है । जब शरीर नष्ट हो जाता है, व भूत बिखर जाते हैं तब पांचो तत्त्वों के मेल से पैदा हुई आत्मा भी नष्ट हो जाती उसका कोई अस्तित्त्व नहीं रहता। जन्म मरण तो पांच-मूतों का खेल है। अत: स्मा कोई स्वतंत्र तत्त्व नहीं है । आत्मा कोई स्वतंत्र तत्त्व न होने से उस के साथ कर्मबन्धन है, न पुनर्जन्म और न मोक्ष है। जब आत्मा ही नहीं तो ईश्वर भी में है। यह विचारधारा भारत में चार्वाक दर्शन के नाम से प्रसिद्ध थी, इसे स्तिक मत भी कहते हैं। आज भी विश्व में इस मान्यता वालों की कमी नहीं है।
2-दूसरी विचार धारा ईश्वरवादी है। -यह विचारधारा ईश्वर और आत्मा मानती है और आत्मा के कल्याण के लिये किसी न किसी रूप में ईश्वर की सना भक्ति आदि का भी विधान करती है। इस विचारधारा का पांच वर्गों में आवेश होता है।
(अ) पहला वर्ग- ईश्वर को एक, अरूपी, सर्व-शक्तिमान, सर्वव्यापी, ज्ञाता, अनादि, स्वतंत्र, नित्य तथा सृष्टिकता मानता है। इस विचारधारा मानने वाले-वेदधर्मानुयायी आर्यसमाजी, सनातनी, वैष्णव, ईसाई, मुसलमान, 'दी, पारसी, नानकपंथी (सिख), निरंकारीमत, कबीरपंथी, राधास्वामी-मत पादि मतावलम्वी तथा उनके छोटे बड़े अनेक संप्रदाय है। इस में वैशेषिक और यिक दर्शनों का समावेश है।
(आ) दूसरा वर्ग-शकराचार्य का अढतवाद है। यह मत एक मात्र रूपी-सर्वव्यापक ईश्वर को ही मानता है । परन्तु आत्मा आदि अन्य तत्त्वों का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org