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पूंजी को भी खो बैठता है और दीवालिया बनकर जगह-जगह ठोकरें खाता हुआ मारामारा फिरता है तथा सब जगह अपमान की दृष्टि से देखा जाता है । इसमें व्यापार का क्या दोष ? यह तो सब जड़बुद्धि की करामात है। गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति का आलम्बन लेकर ही तो भीलपुत्र एकलव्य ने धनुर्विद्या प्राप्त कर ली थी। वह अर्जन से भी बढ़ गया और धनुर्विद्या में पारंगत हो गया था।
5. विरोध के समर्थन में हम एक माव निक्षेप को ही मानते हैं बाकी के तीन निक्षेपों को नहीं मानते । वर्तमान में सशरीरी तीर्थंकार प्रभु भाव निक्षेप से तो विद्यमान नहीं हैं। उनके गुण भी निराकार हैं । सिद्धावस्था में अशरीरी ईश्वर अरूपी है और उसके गुण भी निराकार हैं। उस निराकार का ध्यान उपासना आदि अल्पज्ञ जन कैसे कर सकते हैं ? जड़ प्रतिमा में न तो तीर्थंकर की आत्मा ही है और न उनकी आत्मा के गुण ही विद्यमान हैं । अतः हमारे सामने भाव निक्षेप में इस समय न तो तीर्थकर ही है और उनकी प्रतिमा में भी भाव निक्षेप न होने से मान्य नहीं है । साकार के बिना ध्यान भी सम्भव नहीं है । इसके लिए तो साकार इन्द्रीयगोचर दृश्य पदार्थों की आवश्यकता रहती है । साधु के शरीर में आत्मा है, उसकी आत्मा में साधु के गुण भी हैं । वह उपदेश आदि देकर हमें मार्ग दर्शन भी करा सकता है। इसलिए हम साधु की आत्मा को मानते हैं, वह भाव निक्षेप में विद्यमान है और भाव निक्षेप से ही आत्मकल्याण सम्भव है। बाकी के तीन निक्षेप निरर्थक होने से मानना उचित नहीं है।
___ समाधान-उपर्युक्त दलील पर कुछ विचार करने से पहले चार निक्षेपों के स्वरूप को समझ लेना आवश्यक है । क्योंकि साधारण जन इनके स्वरूप को समझे बिना विषय की गहराई तक न पहुंच पावेंगे।
चार निक्षेपों का स्वरूप वाचक उमास्वाति कृत-तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में निक्षेप का स्वरूप तथा प्रकार; इस प्रकार कहे हैं
"नाम-स्थापना-द्रव्य-भावतस्तन्न्यासः ॥" (अ० 1 सू० 5)
अर्थात्-नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप से सम्यग्दर्शन, तीर्थकर आदि का न्यास होता है अर्थात् पदार्थों के भेद को न्यास अथवा निक्षेप कहा जाता है। प्रत्येक पदार्थ के, अपेक्षाओं को लेकर भिन्न-भिन्न अंश होते हैं । उन अंशों में दोष न आये और सच्चा स्वरूप कैसे जाना जाय यह बताने के लिए निक्षेपों का प्रतिपादन किया गया है। ज्ञेय पदार्थ अखण्ड है तथापि उसे जानने पर ज्ञेय पदार्थ के जो भेद (अंश पहलू) किये जाते हैं उसे निक्षेप कहते हैं। निक्षेप चार प्रकार के हैं-यथा
"चउण्हं जिणा-नाम, ठवणा, दव,भाव जिण भेएआ।" अर्थात-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव; जिन के भेद से जिन चार प्रकार के हैं।
निक्षपों के भेदों की व्याख्या
__ 1. नाम निक्षेपगण, जाति या क्रिया की अपेक्षा किये बिना और जो अर्थव्युत्पित्त सिद्ध नहीं
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