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ऐसा जातक पर्याप्त आयु का भोगी होता है अर्थात् पूरी आयु भोगकर स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त होता है।
नवम गह-कन्या राशि का स्वामी बुध चौथे स्थान में चला गया है जिसके कारण जातक की धार्मिक प्रवत्तियों को बढ़ावा मिल रहा है। साथ ही चन्द्रमा के क्षेत्र में राहु के बैठने से परम्परा से चली आ रही धार्मिक विचारधारा का विरोधी बनने के पूरे आसार हैं । गुरु उच्च का होने से यह राजकुलोत्पन्न जातक अलंकारप्रिय होता है। चन्द्रमा धर्मस्थान में है अतः नीरतीरे इनके जीवन की महान् धटना घटने (केवल-ज्ञान की प्राप्ति) के योग हैं।
दशम गृह--शनि उच्च का होकर राजस्थान में विद्यमान है तथा सूर्य और बुध उसे पूर्ण दृष्टि से देखते हैं । इसलिए जहां एक तरफ़ राजयोग बन रहा है, वहीं तुला राशि का स्वामी बुध शुक्र, जो कर्मक्षेत्र का मालिक भी हैं पंचम स्थान पर (जो बुद्धि का क्षेत्र है) चला गया है । फलतः राजयोग से विपरीत होना अवश्यम्भावी है । इसके परिणामस्वरूप ऐसा राजकुमार एक वीतरागी संन्यासी होता है । ऐसे राजघराने के बालक का लालन-पालन धायों द्वारा होना बिलकुल स्वभाविक है ।
___ एकादश गृह-आय-स्थान का स्वामी मंगल लग्न में केतु के साथ उच्च क्षेत्री होकर बैठा है । वह सम्पन्न जातक आय को परमार्थ में लगाने वाला होता है । एकादश भाव पर उच्च क्षेत्री गुरु एवं होनी शुक्र की पूर्ण दृष्टि है । इस जातक के इकबाल की बुलन्दी जवानी से ही शुरू होती है। यह जातक एक नामवर हस्ती होता है। बहुत ही कमाल को पहुंचा हुआ एक ऐसा व्यक्ति होता है, जिसको समाज का पूज्य वर्ग (ब्राह्मण, योगी, त्यागी तक भी) मान-सम्मान दें।
द्वादश गृह-व्यय स्थान में धनु राशि होने से तथा स्वामी वृहस्पति उच्च का होने से इस जातक द्वारा धार्मिक, परोपकारी एवं मांगलिक कार्यों में ही रुचि के योग है।
निर्वाण-जब शनि की महादशा में वृहस्पति का अन्तर हो और आयु 72 वें वर्ष में चल रहा हो तब मारकेश लगता है।
जिस दिन महावीर स्वामी ने निर्वाण लाभ किया, उस दिन कार्तिक की अमावस्या की रात में स्वाति नक्षत्र चल रहा था। आपके जीवन का 72 वां वर्ष गुजर रहा था। यह मेढ़िय ग्राम (पावापुरी) की भूमि थी। 470 वि० पूर्व (527 ई० पूर्व) में दिवाली की जगमगाती रात्रि में पृथ्वी की जाज्वल्यमान ज्योति, ब्रह्माण्ड की परम ज्योति का एक अभिन्न अंग बन गई । इस प्रकार सन्मति निर्वाण को प्राप्त हुए।
___ डा० भूपसिंह राजपूत हांसी मासिक श्रमण अक्तूबर 1978 से साभार
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