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शुद्ध तीन वस्त्रों से क्रमशः प्रभु के शरीर को पूंछना। बरास (कपूर) चंदन, केसर आदि से प्रभु के शरीर अंगों का विलेपन । तथा सुगन्धित, अखण्ड, ताजे, फूलों से प्रभु के शरीर की शोभा से अंगपूजा की जाती है। अर्थात् इसे क्रमशः जल, चन्दन, पुष्प पूजा कहते हैं । आंगी पूजा का भी इसी में समावेश है।
(2) अग्रपूजा में प्रभु के आगे रखे जाने वाले द्रव्यों का समावेश है । जैसे धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य (मिठाई आदि पकवान) और फल । आरती, मंगलदीपक आदि प्रभु के सामने रखकर पूजा की जाती है । द्रव्यों को आगे रखने के कारण इसे अग्रपूजा कहते हैं।
(3) मावपूजा में चंवर पूजा, नृत्य, भजन, कीर्तन, ध्यान, कायोत्सर्ग तथा चैत्यवन्दन, स्तुति-स्तोत्र आदि किये जाते हैं ।
अंगपूजा और अग्रपूजा को द्रव्य-पूजा कहते है तथा भजन, कीर्तन, चैत्यवन्दन ध्यान, कायोत्सर्ग आदि को भाव-पूजा कहते हैं । अर्थात् जिन-पूजा का द्रव्य पूजा और भाव पूजा में समावेश होता है।
गृहस्थ श्रावक-श्राविकायें द्रव्य तथा (चंवर पूजा, नृत्य ध्यान, चैत्यवन्दनादि से) भाव पूजा अर्थात् दोनों प्रकार की पूजा के अधिकारी हैं। तथा साधुसाध्वी चंवर और नृत्य पूजा को छोड़ कर अन्य सब प्रकार की मात्र भाव-पूजा के अधिकारी हैं। जिनेन्द्र प्रभु तथा जिन प्रतिमा को द्रव्य पूजा में पुष्प पूजा की
अनिवार्यता तथा पुष्प पूजा से हिसा का सर्वथा अभाव
(1) मूर्तियां मिट्टी, रेती (बाल) हाथी-दांत, काष्ठ, पाषाण, धातु (सोना, चांदी, सप्त-धातु आदि) मणि, कांच, रत्न, जवाहरात आदि अनेक द्रव्यों की बनायी जाती हैं । कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र आदि पर चित्र तथा फोटो आदि एवं कागजमैशी से बनी हुई मूर्तियां भी हैं। मिट्टी, बालू, दांत, काष्ठ, कागज की मूर्तियों की अंगपूजा में जल, दूध, चन्दन, केसर, बरास आदि काम में लेने से उन्हें क्षति पहुंचती है। अतः अंग-पूजा में सब प्रकार की मूर्तियों के लिए पुष्पों का उपयोग करने से किसी प्रकार की हानि तथा क्षति सम्भव नहीं है। अर्थात् --अंग-पूजा के लिए पुष्प प्रधान मुख्य तथा अनिवार्य द्रव्य है।
(2) केवली अरिहंत-तीर्थंकर सदा आठ प्रतिहार्य सहित होते हैं। इन्द्रादि देवता सदा इन आठ प्रातिहार्यों द्वारा वीत-राग केवली प्रभू की पूजा भक्ति करते हैं। हम लिख आये हैं कि अरिहंत के चौतीस अतिशयों और बारह-गुणों में से पुष्प वृष्टि भी एक अतिशय और गुण है। यदि तीर्थंकर प्रभु की प्रतिमा की फूलों से पूजा को निकाल दिया जावे तो केवली के चौतीस अतिशयों और बारह गुणों में एक अतिशय और गुण की क्षति रहती है। पूरे अतिशय और गुण विद्यमान नहीं रहते। अत: बीतराग केवली तीयंकर की फूलों से पूजा करना अनिवार्य है और पूजा के फूल मुख्य अंग हैं।
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