SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 107 (15) अष्टप्रातिहार्य-अशोक वृक्ष, सचित पुष्पवृष्टि, वाजिक (दु'दुभि), तीन छत्र, चामर, एक थोजनगामिनी वाणी, सिंहासन तथा भामंडल। (16) घंटा-आरती तथा दर्शन-पूजन के अवसर पर घंटा वादन । (17) नेवेघ (पकवान)-नाना प्रकार के मिष्ठान, नाना प्रकार के 'शाकादि तीमन मीठे पक्व भात आदि अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ । 2. तीन अवस्थाओं की पूजा । दिगम्बर भी तीर्थंकरों की, (1) पिंडस्थ, (2) पदस्थ, (3) रूपातीत अवस्थाओं की पूजाए करते हैं । यथा (1) पिंडस्थ-तीर्थंकर पदवी प्राप्त करने से पहले की अवस्थायें । ये तीन 'प्रकार की हैं-जन्मावस्था, राज्यावस्था और श्रमण-अवस्था इन तीनों अवस्थाओं में तीर्थकर छद्मस्थ-असर्वज्ञ होते हैं। (अ) जन्मादि के समय वस्त्रालंकार पूजा"ये अभ्यचिता मुकुट-कुण्डल-हार रत्नैः शक्रादिभिः सुरगणैः स्तुत पादपद्मः । ते मे जिना: प्रवर वंश जगत्प्रदीपा, स्तीर्थकराः सतत शांतिकराः भवन्तु ।।5।। (शाँति पाठ) अर्थात्-जो तीर्थंकरों के (जन्म-राज-तप-दीक्षा के समय) इन्द्रों आदि के द्वारा मुकुट, कुण्डल और रत्नों आदि के हारों से पूजित हुए तथा जिन के चरण कमलों की स्तुति देव गणों ने की वे श्रेष्ठवंशी तथा जगत के दीपक (चौबीस) तीर्थकर मुझे सदा शांति देवे। (मा) जन्म कल्याणक के सम्य तीर्थंकर को श्रृंगार पूजा सहस अठोतर कलसा प्रभु के सिर ढरई। पुनि सिंगार प्रमुख प्राचार सबै करई ॥ (कविवर रूपचंद्र) अर्थात् - तीर्थंकरों के जन्म होने पर मेरूपर्वत के शिखर पर उनका जन्मोत्सव मनाने के लिए इन्द्रादि देव गणों ने 1008 जल से भरे कलशों से प्रभु के सिर पर जलधारा डालकर अभिषेक (स्नान) कराया। फिर प्रभु का (वस्त्रालंकारों) आदि से) शृंगारादि करके उन्होंने अपने आचार का पालन किया । (इ) राज्यावस्था की वस्त्रालंकारों से सुसज्जित शृंगार से पूजा प्रतिष्ठा आदि के समय पंचकल्याणक पूजा महोत्सव के अवसर पर जिन प्रतिमा को वस्त्रालंकारों से शृंगार करके उसकी पूजा आरती आदि से पूजा की जाती है। (ई) तप (दोक्षा) कल्याणक की पूजा जब तीर्थकर दीक्षा लेने के लिए घर से निकलते हैं तब चक्रवर्ती के वेश में श्रृंगार पूर्वक सजधजकर पालकी में बैठकर बहुत बड़े जलूस तथा अनेक प्रकार के बाजों-गाजों के साथ वन को जाते हैं। इस समय इन्द्रादि देवगण भी प्रभु का वस्त्राबंकारों से शृंगार करके अपने द्वारा निर्मित पालकी में प्रभु को बिठलाकर दीक्षा कल्याणक पूजा करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy