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अर्थात्-कालागुरु (अगर), अंबर, चंदन, कपूर, शिल्हारस, आदि सुगंधित द्रव्यों से बनाई हुई धूप बत्तियों की पंक्ति से सुरेन्द्रों द्वारा स्तवे हुए जिनेन्द्र प्रभु के दोनों चरण कमलों को धूपित करो। कैसी हैं वे धूपबत्तियाँ ? सुगंध से भरपूर और धूपशिखा से दिखाया है स्वर्ग तथा मोक्ष का मार्ग जिन्होंने ।
(अ) सचित्त फलों से पजा
"जबीर-मोय-दाडिम कवित्य पणसूय नालिएरेहि । हिताल ताल खज्जूर बिंब गारंग धारेहिं ॥16॥ पूइफल तिदुआ आमलय जबू बिल्लाइ सुरहि मिट्टहिं । जिण पय परओ रयणं फलेहि कुज्जा सुपकहि ॥17॥
अर्थात्-जम्बीर (बिजौरा), केला, अनार, कोठ, पनस, शहतूत, नारियल हिंताल, ताल, खजूर, किंन्दूरी, नारंगी, सुपारी, तिंदुक, आंवला, जामुन, विल्व इत्यादि अनेक प्रकार के पके और मीठे फलों को जिनेन्द्रदेव के आगे रखकर चरणकमलों की पूजा करो।
(प्रः) अष्टमंगलादि से पूजा
"अढविह मंगलाणि य बहुविह पूजोवयरण दव्याणि ।
धुव-दहणाइ तहा जिण पूयणत्थं विति रिज्जइ" ॥18॥
अर्थात्-आठ प्रकार के मंगल (स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, 'भद्रासन, कलश, मत्स्य-युगल और दर्पण) बहुत प्रकार के पूजा के उपकरण, धूपदहण आदि द्रव्य जिनेन्द्रदेव की पूजा के लिए काम में लावें
(30) जिनेन्द्रदेव की पंचकल्याणक पूजा
गर्भ, (च्यवन), जन्म, तप (दीक्षा), केवलज्ञान, निर्वाण कल्याणकों में प्रत्येक तीर्थंकर को पूज्य मानकर देवेन्द्रादि उनकी पूजा करते हैं। इसी प्रकार दिगम्बरपंथी भी पाँचों कल्याणक पूज्य मानते हैं और उनकी अष्टद्रव्यों द्वारा अर्ध्य पूजाए भी करते हैं।
दिगम्बर कविबर मनरंगलाल कृत अनन्तनाथ जिन पंचकल्याणक पूजा 1-गर्भ (च्यवन) कल्याणक पूजा
नृप सौघ ऊपर हरषि चित अति गाय गुण अमलान, षट् मास आगे रतन वर्षां करत देव महान् । कातिक वदी एकम कहावत गर्भ आये नाथ, हम चरण पूजत अरघ ले मन बचन नाऊ माथ ।। (गर्भकल्याणक संयुक्ताय अर्थ्य निर्वामिति स्वाहा) 2-जन्मकल्याणक पूजा
शुभ जेठ महीना वदी द्वादशी के दिना जिनराज, जनमत भयो सुख जगत के चढ़ि नाथ सहित समाज । शचिनाथ आप सुभाव पूजा जनम दिन की कीन,
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