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________________ (५८) मेघविजय उपाध्याय शान्तिसागर गणि दानचन्द्र जिन विजय कल्याणसागर सूरि १६७०-१७१८ विनयसागर आगामक कल्पकामुदा १७०८ । कया मौन एकादशी कथा स्तोत्र कल्याणमन्दिर टोका व्याकरण मिश्रलिंग कोश (लिंग निर्णय) महिमोदय यशस्वत् सागर व्याकरण भोज व्याकरण (काव्य में) वृद्धचिंतामणि (सारस्वत सूत्र काव्य में) ज्योतिष ज्योतिष् रत्नाकर १७२२ दार्शनिक जैन सप्तपदार्थी १७५७, प्रमाण वादार्च १७५१ वादार्थ निरूपण, स्थाद्वाद मुक्ता वली व्याकरण चन्द्रप्रभा (हमकौमुदी) व्याकरण १७५७ काव्य देवानन्दाभ्युदयमहाकाव्य१७३५ माघकाव्य पूर्ति (अखीर के सब अन्तिम पदों को लेकर) मेघदूत समस्या लेख (पादपूर्ति दिग्विजय महाकाव्य शान्तिनाथ चरित्र महाकाव्य (नैषध के पदों को लेकर) सप्तसंधान महाकाव्य सटीक १७६० कथा-चरिश विजयदेव माहात्म्य लघुत्रिषष्ठिचरित्र (५००० श्लोक पंचमी कथा पंचास्यान-पंचतंत्र स्तुति स्तोश पंचतीर्थ स्तुति (एक के पांच अर्य- पाँच तीयों के वर्णन) अर्हद्गीता (३६ अध्याय) भक्तामर पर टीका ज्योतिष उदय दीपिका वर्ष प्रबोध-मेघ महोदय रमल शास्त्र, हस्त संजीवन सटीक मंत्र-तंत्र वीसायंत्र विधि अध्यात्म मातृका प्रसाद, ब्रह्मबोध युक्तिप्रबोध (मूलप्राकृत) सटीक खंडन मंडन धर्ममंजुषा (स्थानकवासी खंडन) चरिश नल चरित्र आग्रमिक स्थानांग वृत्ति (अभयदेव) पर विवरण प्रकीर्णक विचार षड्विशिका पर अवचुरि १७२१ भावसप्ततिका १७४०, स्तवन हरित रुचि मान विजय उदय चन्द्र, मतिवर्धन ज्योतिष ग्रहलाघव (गणेशकृत) वार्तिक १७६० यशोराजिराजपद्धति (जन्म कुंडली विषयक बंद्यक वैद्यवल्लभ १७२६ धर्मसंग्रह पाण्डित्य दर्पण गौतम पच्छा पर सुगम वृत्ति १७३८ आगमिक उत्तराभ्ययन वृत्ति कल्पसूत्र पर कल्पद्रुम कलिका उपदेश धर्मोपदेश पर वृत्ति हितरुचि लक्ष्मी वल्लभ हर्ष नन्दन सुमति कल्लोल Jain Education International For Private & Personale Only
SR No.003235
Book TitleJain Granth aur Granthkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Belani
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year1950
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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