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संपादक की ओर से इस छोटी सी पुस्तिका में मैंने यथाशक्य जांच कर जैन ग्रन्थकारों का शताब्दी समय दिया है। पर मेरा निर्णय आखिरी है ऐसा मैं नहीं समझता। विद्वानों को इसे जांचना चाहिए और अन्तिम निर्णय पर आने का प्रयत्न करना चाहिए।
इसमें श्वेताम्बर और दिगम्बर साहित्य साथ साथ दिया है। दोनों परंपरा की अलग अलग सूची बनाई गई थी और फिर सभी का पौर्वापर्य जांचने का सरल था नहीं अतएव मैने विगम्बराचार्यों के नाम प्रायः श्वेताम्बरों के नामों के अन्त में एकसाथ रख दिये हैं। इसका कोई यह अर्थ न करें की तत्तत् शताब्दी में वे सभी श्वेताम्बरों के बाद ही हुए हैं।
इस संकलन में मैंने संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश ग्रन्थों को ही स्थान दिया है । सिर्फ श्री आनंबधन जी इसके अपवाद है। मेरा यह दावा तो नहीं है कि इसमें सभी ग्रन्थों का और ग्रन्थकारों का समावेश हो गया है। विषयक्रम भी ग्रन्थनाम से दिया गया है अतएव संभव है कि ग्रन्थ का विषय कुछ और हो, और उसे लिखा गया हो किसी अन्य विषष का। सभी ग्रन्थ देखना संभव नहीं था अतएव ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है। अन्य के नाम के बाद कहीं कहीं श्लोक शब्द लिखकर जो अंक दिये हैं वह ग्रन्थ परिमाण को सूचित करते हैं। और जहाँ ग्रन्थ नाम के बाद सिर्फ अंक दिये हैं उनसे उस ग्रन्थ का रचनाकाल विक्रम संवत् में सूचित होता है ।
इसको तैयार करने में भी मो० द० देसाई के 'नसाहित्पनो संक्षिप्त इतिहास' का, श्री नाथुराम जी प्रेमी के 'जैनसाहित्य और इतिहास' का विशेष रूपसे उपयोग किया है अतएव में उनका आभार मानता हूँ।
८४ आगम (श्वे० संमत) १-११ ग्यारह अंग-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्या.
प्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक,
प्रश्नव्याकरण, विपाक । १२-२३ बारह उपांग-औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रशापना,
सूर्यप्रशप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावतंसिका,
पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा। २४-२७ चार मूलसूत्र-आवश्यक सूत्र, दशवालिक, उत्तराध्ययनानि, पिंड.
नियुक्ति (अथवा ओघनिर्यक्ति) २८-२९ दो चूलिका सूत्र-नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वार । ३०-३५ छ छेद सूत्र-निशीथ, महानिशीथ, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कंध,
पंचकल्प (विच्छिन्न)। ३६-४५ दश प्रकीर्णक-चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिशा, तन्दुल
वैचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान
वीरस्तव, संस्तारक* । ४६ कल्पसूत्र (पर्युषण कल्प, जिनचरित, स्वविरावलि, सामाचारी) ४७ यतिजीतकल्प (सोमप्रभसूरि) । ४८ श्राद्धजीतकल्प (धर्म घोषसूरि) जीत कल्प ४९ पाक्षिक सूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग) ५० क्षमापना सूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग) ५१ बंदित्तु
५२ ऋषिभाषित ५३-७२ वीस अन्य पयन्ना-अजीबकल्प, गच्छाचार, मरणसमाधि, सिद्धप्रा
भृत, तीर्थोद्गार, आराधनापताका, द्वीपेसागरप्रज्ञप्ति,ज्योतिषकरण्टक, अंगविद्या, तिथिप्रकीर्णक, पिण्डविचद्धि, सारावलि, पर्यन्ताराधना, जीव विभक्ति, कवच प्रकरण, योनिप्राभूत, अंगचूलिया, वग्गचूलिया,
वृद्धचतुःशरण, जम्पयन्ना। *किसी के मत से 'वीरस्तव' और 'देवेन्द्रस्तव' दोनों का समावेश एक में है और 'संरतारक' के स्थान में "मरण समाधि" और "पच्छाचपयन्नाार" हैं।
फतेहचन्द बेलानी
बनारस २५-११-४६
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