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नमत्थण (शक्रस्तव) सत्रभाग-१
(४) १ लोगुत्तमाणं
२ लोगनाहाणं ३ लोगहियाणं ४ लोगपईवाणं
५ लोगपज्जोअगराणं (५) १ अभयदयाणं
२ चक्खुदयाणं ३ मग्गदयाणं ४ सरणदयाणं
५ बोहिदयाणं (६) १ धम्मदयाणं
२ धम्मदेसयाणं ३ धम्मनायगाणं ४. धम्मसारहीणं ५ धम्म-वर-चाउरंतचक्कवट्टीणं
(अर्थ) (१) सकल भव्यलोक में (विशिष्ट तथाभव्यत्व से) उत्तम को, (२) चरमावर्त प्राप्त जीवों के नाथ को (मार्ग का 'योग-क्षेम' संपादनसंरक्षण करने से), (३) पंचास्तिकाय लोक के हितरुप को (यथार्थनिरुपण से), (४) प्रभुबचन से बोध पानेवाले संज्ञिलोगों के लिए प्रदीप स्वरुप को, (५) उत्कृष्ट १४ पूर्वी गणधर लोगों के लिए उत्कृष्ट प्रकाशकर को । (१) 'अभय'-चित्तस्वास्थ्य देनेवालों को, (२) 'चक्षु' धर्मदृष्टि-धर्म आकर्षण देनेवालों को, (३) 'मार्ग' अवक्रचित्त के दाता को, (४) 'शरण'-तत्त्वजिज्ञासा देनेवालों को, (५) बोधि' तत्त्वबोध (सम्यग्दर्शन) के दाता को । (१) चारित्रधर्म के दाता को, (२) धर्म के उपदेशक को, (यह संसार जलते घर के मध्यभाग के समान है, धर्ममेघ ही वह आग बुझा सकता है...ऐसा उपदेश) (३) धर्म के नायक (स्वयं धर्म कर औरों को धर्म में चलानेवालों) को, (४) धर्म के सारथि को (जीव-स्वरुप अश्व को धर्म में दमन-पालन-प्रवर्तन करने से), (५) चतुर्गति-अन्तकारी श्रेष्ठ धर्मचक्र वालों को ।
समझ: (४) 'लोगृत्तमाणं' आदि पांच पदों में 'लोक' के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं, १) सकल भव्यलोक में उत्तम, २) चरमावर्त प्राप्त
जीवों के नाथ (मोक्षमार्ग के प्रापक-संरक्षक योग-क्षेमकर्ता) ३) पंचास्तिकाय लोक हो हितरुप (यथार्थ वक्ता होने
से), ४) प्रभु से ज्ञान प्राप्त करे वैसे लोगों के प्रदीप, ५) उत्कृष्ट १४ पूर्वी गणधर लोगों को प्रद्योतकर | (५) अभयदयाणं...जंगल में लूटे गए व चक्षुपट्ट बन्ध हुए को कोइ दयालु निर्भय करे, पट्ट छोड़ दृष्टि दे, मार्ग दिखावे,
नंटे गए माल का पता दे, इसी तरह भगवान 'अभय' = चित्तस्वास्थ्य, 'चक्ष' = धर्मदृष्टि धर्मआकर्षण, 'मार्ग'= अवक्रचित्त, जो तत्त्वसम्मुख हो, 'शरण' = तत्त्व-जिज्ञासा, 'बोधि' = तत्त्वदर्शन के दाता हैं। (६) धम्मदयाणं-चारित्रधर्म के दाता, धर्म के उपदेशक (यह संसार जलते घर के मध्य भाग के समान है, धर्ममेघ ही
आग बुझानेवाला है...इत्यादि), धर्म के नायक, स्वयं धर्म सिद्ध कर दूसरों को धर्म में ले चलनेवाले, धर्म के सारथि दमन-पालन-प्रवर्तन करने द्वारा, चतुर्गति-अन्तकारी श्रेष्ठ धर्मचक्र वाले धर्मचक्रवर्ती ।
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