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जय
वीयराय
जगगुरु
होउ
ममं
तुह
प्पभावओ
भयवं !
भवनिव्वेओ
मग्गाणुसारिआ
इट्ठफल सिद्धि लोगविरुद्धच्चाओ
गुरुजणपूआ
परत्थकरणं च सुहगुरुजोगो तव्वयण-सेवणा
आभवं अखंडा
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शब्दार्थ
जय हो (आपकी मेरे हृदय में)
- हे वीतराग
-
www
- जगद्गुरु !
- हो
- मुझे
-
- प्रभाव से
- हे भगवन् !
भव- वैराग्य
- मोक्ष मार्ग की अनुसारिता, तत्त्वानुसारिता
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अपने ईप्सित कार्य की सिद्धि लोकनिंद्य प्रवृत्ति का त्याग, (लोगों को संक्लेश हो वैसी प्रवृत्ति का त्यांग)
गुरुजन,- धर्मगुरु, विद्यागुरु, व मां-बाप आदि बड़ों की सेवा
- आपके
-
तथा परार्थ परोपकार ( = पर- सेवा) करण
चारित्रसंपत्र गुरु का योग - गुरु-वचन की उपासना (उनके आदेशानुसार व्यवहार - वर्तन)
-
संसारभ्रमण पर्यन्त अथवा इस जन्मान्त तक
अखंड रूप से हो
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