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में बोधि की याचना है। इस प्रकार प्रभु का स्वरूप मंत्र-नमस्कार-सम्यक्त्व और भक्तिप्रभाव से संपन्न है ।
१८. जयवीयराय सूत्र जय वीयराय जगगुरु! होउ ममं तुहप्पभावओ भयवं! भव-निव्वेओ, मग्गाणुसारिआ, इट्ठफलसिद्धि ॥ १॥ लोगविरुद्ध-च्चाओ, गुरुजण-पूआ, परत्थकरणं च, सुहगुरु-जोगो, तव्वयण-सेवणा, आभव-मखंडा॥२॥ वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय! तुह समये, तह वि मम हुज्ज सेवा भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥ ३ ॥ दुखक्खओ, कम्मक्खओ, समाहिमरणं च, बोहिलाभो अ, संपज्जउ मह एअं, तह नाह! पणाम-करणेणं ॥ ४ ॥ सर्वमंगल-मांगल्यं, सर्वकल्याण-कारणं, प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥
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