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चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु- फलो होइ, नर- तिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख दोगच्चं ॥ ३ ॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि- कप्पपायवब्भहिए, पावंति अविग्घेणं,
जीवा अयरामरं ठाणं ॥ ४ ॥ इअ संधुओ महायस ! भत्तिब्भर - निब्भरेण हियएण, ता देव! दिज्ज बोहिं,
भवे भवे पास जिणचंद ! ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
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उवसग्गहरं
पासं
उपद्रवों को हटाने वाले जिनका यक्ष 'पार्श्व' नाम का है, अथवा जो आशा के पाश से मुक्त है
२३ वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ को
पासं
वंदामि
वंदना करता हूँ
कम्मघण मुक्कं
कर्मबादल से मुक्त विसहर विस निन्नासं – सर्प विष ( मिथ्यात्वादि दोषों)
के नाशक
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मंगल कल्लाण आवासं
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मंगल व कल्याण का आवास, अगार (निवास)
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