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भगवन् ! सामायिक पार्यं ।' तब गुरु कहें-'आयारो न मोत्तव्यो'(सामायिक के आचार का त्याग करने योग्य नहीं'। अर्थात् सामायिक की प्रवृत्ति छोड़ने योग्य नहीं।)
६. स्वयं कहना तहत्ति'(आपका कथन सत्य है ।) इसके पश्चात् चरवले पर दायां हाथ रखकर एक नवकार गिनकर सामाइयवयजुत्तो सूत्र 'सामा. विधिए.. १० मनना.. दुक्कडं' तव पढ़ना चाहिए।
प्रणाम और चैत्यवंदन का भेद १. केवल मस्तक झुकाकर प्रणाम करना एकांगी प्रणाम है। २. दो हाथ जोड़ने से दो-अंगी प्रणाम । ३. दो हाथ जोड़कर मस्तक नत करने से त्रयांगी प्रणाम । ४. दो हाथ और दो घुटने झुकाने से (भूमि पर लगाने से) चतुरंगी प्रणाम । ५. दो हाथ, दो घुटने और मस्तक भूमि पर झुक कर लगाने से पंचांगी प्रणाम कहलाता है।
'दंडक' अर्थात् 'अरिहंत चेइयाणं' चैत्यस्तव आदि सूत्रों के आलापक (फकरे) और जो स्तुति (थोय अर्थात् काउस्सग्ग करने के पश्चात् केवल 'अरिहंत चेइयाणं' और 'अत्रत्थ' सूत्र बोलकर काउस्सग्ग करके संस्कृत अथवा किसी अन्य भाषा में स्तुति) कही जाती है, यह लघु चैत्यवंदन कहा जाता है। ___ यह च र योग (अर्थात् चार थोयों की एक स्तुति का संपूर्ण जोड़) नमुत्थुणं, लोगस्स, पुक्खरवर, सिद्धाणं-बुद्धाणं सूत्रों के साथ हो तो यह मध्यम चैत्यवंदन कहा जाता है।
१. नमुत्थुणं, २. अरिहंत-चेइयाणं, ३. अत्रत्थ लोगस्स, ४. पुक्खरवर और ५. सिद्धाणं-बुद्धाणं, - ये पाँच दंडक सूत्र
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