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है, अत: इसे गुरु-स्थापना सूत्र भी कहते है।
इस सूत्र में गुरु के १८ निवृत्ति धर्मों तथा १८ प्रवृत्ति धर्मों, कुल ३६ गुणों का निर्देश हैं । (१) १८ निवृत्ति धर्म ये हैं, - पांच इन्द्रियों का संवर अर्थात् पांचों इन्द्रियों को इष्ट विषयों की रागयुक्त प्रवृत्ति से तथा अनिष्ट विषयों के उद्वेग से रोकना। ब्रह्मचर्य की नौवाड में स्त्री • पशु - नपुंसकवाले स्थानों में रहने का त्याग इत्यादि, तथा ४ कषायों को रोकना। (२) १८ प्रवृत्ति - धर्म ये हैं,- पांच महाव्रतों के पालन में प्रत्येक व्रत की ५-५ भावनासहित प्रवृत्ति रखना। एवं ज्ञानाचार-दर्शनाचार-चारित्राचार, तपाचार-वीर्याचार,- ये पांच आचार के प्रकारों में प्रवृत्ति रखना। ऐसे ही ईर्यासमिति आदि पांच समितियों एवं मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों के पालन में प्रवृत्त होना।
३. खमासमणुं (पंचांग प्रणिपात) सूत्र
इच्छामि खमासमणो वंदिङ, जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि!
| शब्दार्थ । इच्छामि - चाहता हूँ खमासमणो - हे क्षमाश्रमण !(क्षमाप्रधान साधु !) . वंदिउं - वंदना करने के लिए, जावणिज्जाए - सारी शक्ति लगाकर (आपकी यापनिका
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