SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन, वचन और काया ये तीनों योग, करना, कराना और अनुमोदन करना-इन तीन कारण के योग, ‘एक संयोगी' आदि भांगे तीन काल के आश्रय से कुल १४७ होते हैं। उनके ज्ञान के साथ किया गया पच्चक्खाण शुद्ध होता है। [प्रवचन सारोद्धार] गंठिसहियं पच्च० का महत्त्व : जो अप्रमत्त आत्माए हमेशा ग्रंथिसहित पच्चक्खाण की गांठ बांधते हैं, वे स्वर्ग और मोक्ष के सुख अपनी गठरी में बाँधते हैं-ऐसा समझना चाहिए। ___ अपि च, विस्मृत न करने वाले वे धन्य पुरुष श्री नमस्कार मंत्र का स्मरण करके ग्रंथिसहित की गाँठ छोड़ने के साथ साथ कर्म की गाँठ भी छोड़ देते हैं। अत: वे व्यक्ति ग्रंथिसहित का अभ्यास करते हैं जो शिवपुर के मार्ग के अभ्यासार्थी हैं। गीतार्थजन का कथन है कि ग्रंथसहित पच्चक्खाण का फल अनशन जितना होता है। (यति-दिनचर्या) ___ पच्चक्खाण से कर्म के आश्रव के द्वार (निमित्त) बंद हो जाते हैं। फलत: तृष्णा का छेद होता है। तृष्णा छेद से मनुष्य में अनुपम उपशम प्रगट होता है। उससे पच्चक्खाण शुद्ध होता है। शुद्ध पच्चक्खाण से निश्चयरूपेण चारित्रधर्म प्रगट होता है जिससे पुराने कर्मों की निर्जरा होती है। फलत: 'अपूर्वकरण' (आत्मा का अपूर्व वीर्योल्लास) गुण व्यक्त होता है जो केवलज्ञान का कारण होता है और केवलज्ञान से शाश्वत सुख का १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy