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________________ प्रद्म.. २ लघुवय एक थें जीया, मुक्ति में वास तुम किया, न जानी पीर थें मोरी, प्रभु अब खींच ले दोरी. विषय सुख मानी मों मन में, गयो सब काल गफलत में, नरक दु:ख वेदना भारी, नीकलवा ना रही बारी. प्रद्म... ३ परवश दीनता कीनी, पाप की पोट सिर लीनी, भक्ति नहीं जानी तुम केरी, रह्यो निशदिन दुःख घेरी प्रद्म ४ इसविध विनती तोरी, करूं मैं दोय कर जोरी, आतम आनंद मुज दीजो, वीरनुं काज सब कीजो. श्री शीतलनाथ जिन स्तवन शीतल जिन मोहे प्यारा....... साहिबा शीतल जिन० भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिऊ के जिऊ हमारा साहिब...१ ज्योति शुं ज्योति मिलत जब ध्यावे, होवत नहीं तब न्यारा, बांधी मूठी खूले भव माया, मीटत महाभ्रम भारा साहिबा २ तुम न्यारे तब सबहीं न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुम ही नजीक नजीक है सब ही, ऋद्धि अनंत अपारा. साहिब.... ३ विषय लगन की अगन बुझावत, तुम गुन अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुन रस की, कौन कंचन कौन दारा. साहिबा ...४ साहिबा ५ शीतलता गुने होड करत तुम, चंदन कहां बिचारा, नामे ही तुम ताप हरत हो, वांकुँ घसत घसारा. करत कष्ट जन बहुत, हमारे नाम तिहारु आधारा, जश कहे जनम मरण भय भागो, तुम नामे भव पारा साहिबाबा... ६ Jain Education International प्रद्म... ५ १३३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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