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ध्यायक ध्येय ध्यान गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके । खीर नीर परे तुमशुं मिलशुं, वाचक यश कहे हेजे हलशुं साहिबा ॥५ ॥
श्री ऋषभदेव स्तवन
जगजीवन जगवालहो, मरुदेवीनो नंद लाल रे । मुख दीठे सुख उपजे, दरिसणे अति ही आनंद लाल रे । जग जीवन०
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आंखडी अंबुज पांखडी, अष्टमी शशी सम भाल लाल रे । वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिही रसाल लाल रे । जग जीवन ०.
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लक्षण अंगे विराजता, अडहिय सहस उदार लाल रे रेखा - कर-चरणादिके, अभ्यंतर नहीं पार लाल रे । जग जीवन०
॥ ३
इन्द्र चंद्र रवि गिरि तणा, गुण लइ घडियुं अंग लाल रे । भाग्य किहां थकी आवीयुं, अचरिज एह उत्तंग लाल रे । जग जीवन....
॥ ४ ॥
गुण सघणां अंगीकर्या, दूर कर्या सवि दोष लाल रे । वाचक जसविजये थुण्यो, देजो सुखनो पोष लाल रे । जग जीवन०
श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ ! प्राण से प्यारा छोडावो कर्म की धारा, करम फंद तोड़वा धोरी, प्रभुजी से अर्ज है मोरी ...
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प्रद्म... १
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