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________________ सुरवर पूजित पदकज रज, मिलवट तिलके चढाशुं, मनमां हर्षी डुंगर फरसी, हैडे हरखित था ... समकित धारी स्वामी साथे, सद्गुरु समकित लासुं, छ'री' 'पाली पाप पखाली, दुर्गति दूरे पलाश ... श्री जिन नामी समकित पामी, लेखे त्यारे गणाशुं 'ज्ञानविमल' कहे धन-धन ते दिन, परमानंद पद पाशुशुं मोरा...७ (३) शेत्रुंजा गढना वासी रे, मुजरो मानजो रे, सेवकनी सुणी वातो रे, दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुमारो देदार, आज मुने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे, भवदुःख भांजशे रे... शेजा... १ एक अरज अमारी रे, दिलमां धारजो रे. चोरासी लाख फेरा रे, दूरे निवारजो रे, प्रभु ! - मने दुर्गति पडतो राख, तोरुं दरिशन वहेलुं रे दाख साहिबानी... २ दौलत सवाइ रे, सोरठ देशनी रे, बलिहारी जाऊं रे, प्रभु तारी वेशनी रे, प्रभु में दीठु रूडुं ताहरु रुप, देखी मोह्या सुरनर वृंद ने भूप तीरथ को नहीं शेत्रुंजा सारखुं रे, प्रवचन पेखीने कीधुं में पारखुं रे, ऋषभ ने जोइ जोई हरखे जेह, Jain Education International १२६ मोरा...५ मोरा..६ For Private & Personal Use Only साहिबानी....३ www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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