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________________ श्री सिद्धिगिरिजी के स्तवन __ (राग दुर्गा) क्युं न भये हम मोर विमलगिरि, क्युं न भये हम मोर ..१ सिद्धवड रायण रुख की शाखा, झूलत करत झकोर, विमलगिरि ..२ आवत संघ रचावत आंगियां, गावत गुण घमघोर, विमलगिरि हम भी छत्रकला करी निरखत, कटने कर्म कठोर, विमलगिरि मूरत देख सदा मन हरखे, जैसे चंद चकोर, विमलगिरि ..५ श्री रिसहेसर दास तिहारो, अरज करत करजोर, विमलगिरि (राग - सारंग) (२) मोरा आतमराम ! कुण दिन शेव॒जे जाशं... शेजूंजा केरी' पाजे चढंतां, ऋषभ तणां गुण गाशुं... मोरा..१ ए गिरिवरनो महिमा सुणीने, हियडे समकित वासु, जिनवर भावसहित पूजीने, भवे भवे निर्मल थाशुं... मोरा...२ मन वच काया निर्मल करीने, सूरजकुंडे न्हाशुं मरुदेवीनो नंदन नीरखी, पातक दूरे पलाश्युं... इण गिरि सिद्ध अनंता हुआ, ध्यान सदा तस ध्याशें, सकल जनममां ए मानव भव, लेखे करीय सराशुं... मोरा..४ . १. की, २. सीढी, पगथी, ३. मोरा..३ १२५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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