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________________ स्तवन विभाग सामान्यजिन स्तवन (१) (राग - मालकोश) हो जिन तेरे चरण की शरण ग्रहूं, हृदयकमल में ध्यान धरत हूँ, शिर तुज आण वहूँ... तुज सम खोल्यो देव खलक' में, पेख्यो नहीं कबहुँ .... तेरे गुणों की जपुं जपमाला, अहनिश पाप दहूँ... मेरे मन की तुम सब जानो, Jain Education International क्या मुख बहोत कहूं... कहे जसविजय करो त्युं साहिब, ज्युं भव दुःख न लहूँ... (२) - (राग - दुर्गा) क्युं कर भक्ति करूँ प्रभु तेरी..... ? (२) क्रोध, लोभ, मद, मान, विषयरस छांडत गेल े न मेरी, क्यु... १ हो जिन २ हो जिन ३ हो जिन ४ हो जिन कर्म नचावे तिमहि नाचत माया वश नटचेरी, क्युं .... दृष्टि राग दृढ बंधन बांध्यो, निकसन न रही शेरी, क्युं ... ११९ ५ हो जिन करत प्रशंसा सब मिल अपनी, परनिंदा अधिकेरी क्युं ... कहत मान जिन भावभगति बिन शिवगति होत न मेरी, क्युं ... १. विश्व, सृष्टि, जगत् २. दिनरात ३. पीछा ४. गली For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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