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त्याग कर सकूँ, मुझे ऐसा जीवन जीने की क्षमता प्राप्त हो की मेरे परिचय में आनेवाले सभी निर्भयता का अनुभव करें।
अंग- ४.स्कंध (कंधा) हे भगवन् ! आपने अपने कन्धों से अभिमान दूर कर दिया। जब मनुष्य अभिमान करता है, तब उसके स्कन्ध ऊचे हो जाते हैं। भगवन् ! आप अनन्त बलवाले होते हुए भी आपके ऊपर बड़े से बड़े अत्याचार करनेवाले अल्पबली भी दुर्जन के सन्मुख भी आपने गर्व से कंधा ऊचा नहीं उठाया।
हे भगवन् ! आपने अपने कंधों पर अनेक जीवों के आत्मोद्धार का उत्तरदायित्व उठाया था। वह भी किसी प्रकार के प्रत्युपकार की अपेक्षा न रखते हुए ! आपने जिनकी जिम्मेदारी ली, उन्हें आपने पार लगाया। जिन कंधों ने ऐसा महान् उत्तरदायित्व सफलतापूर्वक निभाया हैं, उनकी मैं पूजा करता हूँ। ____ हे भगवन् ! आपकी स्कंध-पूजा से मुझे भी ऐसा सामर्थ्य प्राप्त हो कि मेरे भाग में आई कल्याण जवाबदारी, मैं किसी भी प्रकार के बदले की आशा अथवा अपेक्षा के बिना, सफलतापूर्वक वहन कर सकूँ। आपके कंधों की पूजा से मेरे कंधों और हृदयमें से मेरा गर्व दूर हो जाए।
अंग - ५.मस्तक हे भगवन् ! १४ राजलोक के मस्तक (शीर्ष) स्थानीय अग्रभाग पर रही उज्ज्वल गुणवाली सिद्धशिला पर आप बसे हैं इसलिए भवी जीव आपके शीर्षाग्र की पूजा करते हैं।
हे भगवन् ! आपको जब भी जहाँ भी औरों ने देखा है,
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