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अंग - २. जानु-घुटने
हे भगवान् ! आपने लेशमात्र भी थकान की परवाह न करते हुए जानु के बल पर खड़े पाँव कायोत्सर्ग - ध्यान में स्थित होकर उत्कृष्ट आत्मसाधना की, आत्मध्यान किया। साधना और ध्यान के कारण आप के जानु भी पूज्य बन गए ।
हे कृपालो ! आपकी जानुपूजा के प्रभाव से मुझे भी ऐसा सामर्थ्य मिले कि मैं भी अविचलरूप से और अप्रमत्त भाव से मोक्ष मार्ग की साधना व आत्मध्यान कर सकूँ ।
अंग - ३. हस्त कलाई (कांडे)
हे भगवन् ! आपके हस्त की किन शब्दों में प्रशंसा करूँ ? आपके पास पुष्कल ऋद्धि और सिद्धि थी, तथापि आपने इसका उपयोग क्या किया ? परमात्मस्वरूप प्राप्त कर भव्य जीवों को तारने के लिए चारित्र्यग्रहण करने हेतु आपसे लोकांतिक देवों की विज्ञप्ति के बाद, आपने स्वयं अपने हाथों से एक वर्ष तक रोज का १०८ लक्ष सुर्वण का दान चालू रखा। वह भी इस रीति से कि दायें हाथ से किए गए दान का बायें हाथ को पता न चले । मतलब आपने इस महासुकृत की किसी के आगे बड़ाई नहीं गाई ।
आपने इसी हाथ से आपकी शरण में आनेवालों को अभयदान व चारित्रदान भी दिया। धनदान और अभयदान के कारण आपके हाथ (हथेली) के कांडे भी पूज्य हैं ।
हे भगवन्! आपकी करपूजा के प्रभाव से मेरे भी हृदय में यह भावना प्रगट हो कि मैं भी समस्त भौतिक पदार्थों व हिंसा का
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