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भावार्थ जिस प्रकार कमल पत्र का संपुट (अंजलि) बनाकर उस में जल लेकर युगलियों ने भगवान ऋषभदेव के चरणों के अंगूठे की पूजा की थी, क्योंकि वे चरण ही भवसागर का अंत लानेवाले हैं। अत: हे भक्तों ! उसी प्रकार तुम भी प्रभु की पूजाकर भवरूपी सागर पार करो ॥ १ ॥
जो घुटनों के बल से (प्रभु) काउस्सग्ग-ध्यान में स्थिर रहे, देश-विदेश में विचरण करते रहे और जिन पर खड़े ही खड़े रहकर उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया, उन जगत्स्वामी के घुटनों की (हे भविजन) पूजा करो ॥ २ ॥
जिस हाथ से प्रभु ने लोकांतिक देवों की (तीर्थ स्थापन हेतु चारित्र की) प्रार्थना के पश्चात् वर्षीदान दिया, उसकी करकलाइ पर सबहुमान पूजा करो ॥ ३ ॥
प्रभु के अनन्त वीर्य की शक्ति देखकर दोनों कन्धों ने अभिमान छोड़ दिया, व प्रभु अपने अनन्त भुजबल के-पराक्रम से भवरूपी जल से पार हो गए, उन महान कन्धों की पूजा करो ॥ ४ ॥ ___लोक के (ऊपर के मस्तक स्थान रूप अंत में गुण से उज्ज्वल (शुद्ध) सिद्धशिला है। वहाँ भगवान् का निवास है। इसीलिए भव्यलोग शिर-शिखा-मस्तक के शिखास्थान की पूजा करते हैं ॥ ५ ॥
तीनों लोक के जीव तीर्थंकर-नामकर्म नाम के पुण्य के प्रभाव से जिनकी पूजा करते हैं, उन त्रिभुवन के तिलक समान
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