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से पूजा करना और तत्पश्चात् चरणों, घुटनों, कंधों, मस्तक और हाथ में पुष्प चढ़ाना।
प्रभु के नवांग को पूजा करते समय क्रमश: निम्नलिखित दोहे पढ़ने चाहिए.-- जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजंत, ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ जानुबले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश, खडा खडा केवल लां, पूजो जानू नरेश लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान, कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवि बहुमान मान गयुं दोय अंसथी, देखी वीर्य अनंत, भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत सिद्धशिला गुणऊजली, लोकांते भगवंत वसिया तिणे कारण भवि, शिर-शिखा पूजंत ॥ ५ ॥ तीर्थंकर-पद पुण्यथी, तिहुअण जन सेवंत, त्रिभुवन तिलक-समा प्रभु, भालतिलक जयवंत ॥ ६ ॥ सोल पहोर देइ देशना, कंठ विवर वर्तुल, मधुर ध्वनि सुरनर सुने, तिन गले तिलक अमूल ॥ ७ ॥ हृदयकमले उपशमबले, बाल्या राग ने रोष, हिम दहे वनखंड ने, हृदय तिलक संतोष ॥ ८ ॥ रत्नत्रयी गुण ऊजली, सकल सुगुण विश्राम, नाभि-कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ९ ॥ उपदेशक नव तत्त्वना, तिणे नव अंग जिणंद, पूजो बहुविध भावथी, कहे 'शुभवीर' मुणींद ॥ १० ॥
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