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________________ 'आभदमखंडा' यानी सतत रूप से भवान्त तक की वस्तु की तीव्र इच्छा प्रकट करके, 'वारिज्जइ'० गाथा में जन्म जन्मान्तर के लिए भगवत्चरण- सेवा की दृढ़ मांग व्यक्त की गई है कि प्रत्येक जन्म में यह मिले। इस हेतु से बाद की 'दुक्खक्खओ' गाथा में चार इच्छाएँ प्रगट की हैं : वीतराग के प्रणाम से १. मानसिक दुःख का क्षय, २. कर्मक्षय अथवा सकाम निर्जरा, ३. समाधिमरण व ४. बोधिलाभ । (१) पहली इच्छा में प्रत्येक वर्तमान समय के लिए मानसिक दुःख-क्षय की कामना कर, (२) दूसरी में आजीवन सकाम निर्जरा ( १२ प्रकार के तप की निराशंस साधना) की अभिलाषा व्यक्त कर, (३) तीसरी में जीवन के अंतिम समय में समाधिमरण, और (४) चौथी में परलोक के लिए बोधिलाभ की अभिलाषा व्यक्त की गई है। 'सर्वमंगलमाङ्गल्यं' में जिनशासन के प्रभाव की अनुमोदना के साथ हर्ष प्रगट किया गया है कि जिनशासन जयवन्त रहता है ! ! १९. अरिहंत चेझ्याणं (चैत्यस्तव) सूत्र अरिहंत - चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं ॥ १ ॥ वंदणवत्तिआए, पूअणवत्तिआए, सक्कारवत्तिआए, सम्माणवत्तिआए, बोहिला भवत्तिआए, Jain Education International ९२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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