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________________ लब्धियां थी. प्र.१३६. आप महावीरकों ही भगवंत सर्वज्ञ मानते हो, अन्य देवोंकों नही, इसका क्या कारण है ? उ. अपने २ मतका पक्षपात छोड के विचारीये तो, श्री महावीरजी में ही भगवंत के सर्व गुण सिद्ध होते है, अन्य देवो में नही. प्र.१३७. श्री महावीरजीकों हूए तो बहुत वर्ष हुए है, हम क्योंकर जानेके श्री महावीरजी में ही भगवानपणेके गुण थे, अन्य देवों में नही थे ? उ. सर्व देवोंकी मूर्तियों देखने से और तिनके मतोमें तिन देवोंके जो चरित कथन करे है तिनके वांचने और सुनने से सत्य भगवंतके लक्षण और कल्पित भगवंतोंके लक्षण सर्व सिद्ध हो जावेगे. प्र.१३८. कैसी मूर्तिके देखने से भगवंतकी यह मूर्ति नही है, ऐसे हम माने ? उ. जिस मूर्त्तिके संग स्त्रीकी मूर्ति होवे तब जाननाके यह देव विषयका भोगी था. जिस मूर्त्तिके हाथ में शस्त्र होवे तब जानना यह मूर्ति रागी, द्वेषी वैरीयोके मारने वाले और असमर्थ देवो की है, जिस मूर्त्तिके हाथमें जपमाला होवे तब जानना यह किसीका सेवक है, तिससे कुछ मागने वास्ते तिसकी माला जपता है. प्र.१३९. परमेश्वरकी कैसी मूर्ति होती है ? उ. स्त्री, जपमाला, शस्त्र , कमंडलुसें रहित और शांत निस्पृह ध्यानारूढ समता मतवारी, शांतरस, मग्नमुख विकार रहित , ऐसी सच्चे देवकी मूर्ति होती है. १४०. जैसे तुमनें सर्वज्ञकी मूर्त्तिके लक्षण कहे है, तैसें लक्षण प्रायें बुद्धकी मूर्ति है, क्या तुम बुद्धको भगवंत सर्वज्ञ मानते हो ? । उ. हम निकेवल मूर्त्तिके ही रूप देखने में सर्वज्ञका अनुमान नही करते है, किंतु जिसका चरितनी सर्वज्ञके लायक होवे, तिसकों सच्चा देव मानते है. प्र.१४१. क्या बुद्धका चरित सर्वज्ञ सच्चे देव सरीषा नही है ? उ. बुद्धके पुस्तकानुसार बुद्धका चरित सर्वज्ञ सरीषा नही मालुम होता है. - - GOABAGDAGDAG00000GAGAGEAGUAGSAGEAN८ BAGDAGOGSAGERGENGAGRAGDAGOGOAGDAGA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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