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दैनिक कर्तव्य श्रावक के लिए प्रथम दैनिक कर्तव्यों का उपदेश निम्न प्रकार से है - नमस्कार महामन्त्र के स्मरण से दिन का आरम्भ
आज का दिन सफल व आनन्दमय बने। अतः प्रातः सूर्योदय के पहले एक प्रहर, चार घड़ी अथवा दो घड़ी रात्रि शेष रहे तब शय्या का त्याग करें | उठते ही महामंगलमय परमेष्ठी नमस्कार महामन्त्र का सात या आठ बार स्मरण करें | उठते समय चन्द्र बायाँ स्वर चलता हो तो प्रथम बायाँ पाँव एवं दाहिना स्वर चलता हो तो दायाँ पाँव प्रथम उठावें ।
शौचादि की बाधा हो तो दिन में एवं संध्या समय उत्तराभिमुख होकर तथा रात्रि में दक्षिणाभिमुख होकर निर्जीव भूमि पर मौनपूर्वक टालें ।
दाद आदि हुआ हो तो उस पर बासी थूक घिसें ।
प्रातः पुरुष पुण्य-प्रकाशक अपने दाहिने हाथ को तथा स्त्री बायें हाथ को देखे । आत्म-चिन्तन करें
जगने के बाद शौचादि से निवृत्त होकर आत्म-चिन्तन करें । मैं कौन हूँ? मेरी जाति कौनसी है ? कुल कैसा है ? उपास्यदेव कौन हैं ? उपकारी गुरु कौन हैं ? हितकारी धर्म कौनसा है ? मेरे क्या-क्या अभिग्रह हैं ? मैं किस अवस्था में हूँ ? अवश्य ही मैं कहीं से आया हूँ, तो यहीं मेरा जन्म क्यों हुआ? और यहाँ से अवश्य मुझे जाना है तो कहाँ जाऊंगा? इत्यादि चिन्तन से भौतिक पदार्थों के प्रति लगाव घटने लगता है और पापप्रवृत्तियों में कमी आती है। अतः प्रतिदिन आत्म-चिन्तन रूप धर्म जागरिका करें | नींद उड़ाने का उपाय
उक्त चिन्तन के बाद भी यदि सुस्ती लगे अर्थात् नींद न उड़े तो नाक से श्वास को कुछ क्षण के लिए रोक देवें । नींद उड़ जाएगी । ताजगी का अनुभव होगा | आवश्यक कार्य आदि की सूचना मन्द स्वर से करें
जल्दी सुबह उठने के बाद आवश्यक कार्य आदि की किसे भी सूचना करनी हो तो मन्द स्वर से करें | गाढ़ स्वर में बोलने पर हिंसक प्राणी जग जावे और हिंसा में प्रवृत्ति करे एवं पड़ोसी जग जावे और आरम्भ समारम्भ में लग जावे | इस प्रकार के फिजूल पापबन्ध से स्वयं को बचाइये । सामायिक, प्रतिक्रमण और स्वाध्याय करें
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