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एक वर्षमें एक कोटी पुस्तक १००००००० लिखे. आचारंगका महाप्रज्ञा अध्ययन किसी कारण सें न लिखा, परं देवार्द्धिगणि क्षमाश्रमणजी प्रमुख कोइभी आचार्यने अपनी मन कल्पनासें कुछभी नही लिखा है, इस वास्ते जैन शास्त्र सर्व सत्य कर मानने चाहिए । जो कोइ कोइ कथन समजमें नही आता है, सो यथार्थ गुरु गम्यके अभावसें, परं गणधरो के कथनमें किंचित् मात्रभी भूल नही है, और जो कुछ किसी आचार्यके भूल जाने सें अन्यथा लिखानी गया होवे तोभी अतिशय ज्ञानी विना कोन सुधार सके, इस वास्ते तहमेव सच्चंजं जिणेहिं पन्नत्तं, इस पाठके अनुयायी रहना चाहिये ।
प्र. ७४. जैन मतमें जिसकों सिद्धांत तथा आगम कहते है, वै कौनसे कौनसे है, और तिनमे विषय क्या क्या है, और तिनके मूल पाठ १ निर्युक्ति २ भाष्य ३ चूर्णि ४ टीका ५ के कितने कितने ३२ बत्तीस अक्षर प्रमाण श्लोक संख्या है, यह संक्षेप में कहो.
उ. इस कालमें किसी रुढिके सबबसें ४५ पैंतालीस आगम कहै जाते है, तिनके नाम और पंचांगीके श्लोक प्रमाण आगे लिखे हुए, यंत्रसें जान लेने और इनमें विषय विधेय इस तरेका है. आचारंगमें मूल जैन मतका स्वरूप और साधुके आचारका कथन है १ सूयगडांगमे तीनसौ ३६३ त्रेसठ मतका स्वरूप कथनादि विचित्र प्रकारका कथन है २ ठाणांगमें एकसें लेके दश पर्यंत जे जे वस्तुयो जगत में है तिनका कथन है ३. समवायांगमें एक सें लेके कोटाकोटि पर्यंत जे पदार्थ है तिनका कथन है ४. भगवतीमें गौतमस्वामीके करे हुए विचित्र प्रकारके ३६००० छत्तीस हजार प्रश्नोके उत्तर है. ५ ज्ञातामे धर्मी पुरुषोंकी कथा है ६ उपाशक दशामे श्री महावीर के आनंदादि दश श्रावकों के स्वरूपका कथन है ७. अंतरडमें मोक्षगये ९० नव्वे जीवांका कथन है ९. अणुत्तरोववाइमें जे साधु पांच अनुत्तर विमानमे उत्पन्न हुए है, तिनका कथन है. ९ प्रश्नव्याकरणमें हिंसा १, मृषावाद २ चौंरी ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ इन पांचो पापांका कथन और अहिंसा १, सत्य २, अचौरी ३, ब्रह्मचर्य ४, परिग्रह त्याग ५ इन पांचो संबरोका स्वरुप कथन कराहे. १० विपाक सूत्रमें दश दुःख विपाकी और दश सुख विपाकी जीवांके स्वरूपका कथन है ११ इति संक्षेपसें अंगाभिधेय उववाइमें २२ बावीस प्रकारके जीव काल करके जिस जिस जगें उत्पन्न होते है तिनका कथनादि कोणककी वंदना विधि महावीर की धर्म देशनादिका कथन है. १ राजप्रश्नीयमें प्रदेशी राजा नास्तिक
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