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________________ तक भूमिमे घस गये १८ पीछे प्रभात विकुर्वी कहने लगा विहार करो. भगवंततो अवधिज्ञानसें जानते थे के अबीतो रात्रि है १९ पीछे देवांगनाका रूप करके हावभावादि करके उपसर्ग दीना २० इन वीसों उपसर्गोसें जब भगवंत किंचित् मात्रभी नही चले तब संगमदेवताने छमास तक भगवंतके साथ रहके उपसर्ग करे, अंतमें थकके अपनी प्रतिज्ञासें भ्रष्ट होके चला गया. अनार्य देशमे भगवंतको बहुत परीषह उपसर्ग हुए । अंतमे दोनो कानोमें गोवालीयोंने कांसकी सलीयो डाली तिनसें बहुत पीडा हुइ सो मध्यम पावापुरी नगरीमे खरकवैद्य सिद्धार्थ नामा बाणियाने कांसकी सलीयों कानोमेंसे काढी भगवंत निरुपक्रमायुवाले थे इससें उपसर्गोमे मरे नही, अन्य सामान्य मनुष्यकी क्या शक्ति है, जो इतने दुःख होने से न मरे. विशेष इनका देखना होवे तो आवश्यक सूत्रसे देख लेना. प्र.४७. श्री महावीरस्वामीकों उपसर्ग होने का क्या कारण था । उ. पूर्व जन्मांतरोमें राज्य करणेसें अत्यंत पाप करे वे सर्व इस जन्ममेही नष्ट होने चाहिये इस वास्ते असाता वेदनीय कर्म निकाचित्तमें अपने फल रूप उपसर्गसें कर्म भोग्य कराके दूर हो गये, इस वास्ते बहुत उपसर्ग हुए | प्र.४९. श्री महावीरजीने परीषहे किस वास्ते सहन करे और तप किस वास्ते करा. उ. जेकर भगवंत परीषहे न सहन करते और तप न करते तो पूर्वोपार्जित पापकर्म क्षय न होते, तबतो केवलज्ञान और निर्वाण पद ये दोनो न प्राप्त होते इस वास्ते परीषहे उपसर्ग सहन करे, और तपभी करा. प्र.५०. श्री महावीरजीने छद्मस्थावस्थामें तप कितना करा और भोजन कितने दिन करा था। उ. इसका स्वरूप नीचले यंत्र से समझलेना. छ मासी | छ मासी |चार | तीन | अढाइ दो मासी | डेढ मास |मास क्ष-| पखवा | तप १ मासी | मासी | मास तप तप तप पण तप डीया तप तप १ । पांच दिन ९ २ २ ६ । १२ ७२ न्यून - - XNM5555555a; 1000GOAGOOGOA000000000000000000000000 1 कककककक 006606606600%AGOOGBADOOGBANSAGEOGRAGON Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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