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________________ आज संवत १८४५ तक २४९७ वर्षके लगभग हुए है विक्रम सें ५४२ वर्ष पहिले चैत्र शुदि १३ मंगलवारकी रात्रि और उत्तराफाल्गुनि नक्षत्रके प्रथम पादमें जन्म हुआ था । प्र.१३. क्षत्रियकुंड ग्रामनगर किस जगें था । उ. पूर्व देश में सूबे विहार अर्थात् बहार तिसके पास कुंडलपुरके निजदीक अर्थात् पास ही था । प्र.१४. महावीर भगवंत देवानंदा ब्राह्मणीकी कूखमें किस वास्ते उत्पन्न हुए. उ. श्री महावीर भगवंतके जीवने मरीचीके भवमे अपने उंच गोत्र कुलका मद अर्थात् अभिमान करा था तिस्सें नीच गोत्र बांध्याथा सो नीच गोत्र कर्म बहुते भवों मे भोगना चडा तिसमें से थोडासा नीच गोत्र भोगना रह गया था तिसके प्रभावसे देवानंदाकी कूखमें उत्पन्न हुए पर नीच गोत्र भोगा. प्र. १५ तो फिर जेकर हम लोक अपनी जात पर कुलका मद करे तो अच्छा फल होवेगा के नही, मद करना अच्छा है के नही. उ. जेकर कोइभी जीव जातिका १ कुलका २ बलका ३ रूपका ४ तपका ५ ज्ञानका ६ लाभका ७ अपनी ठकुराइका ८ ये अत प्रकारका मद करेगा सो जीव घणे भवां तक ये पूर्वोक्त अपही वस्तु नीच तुब मिलेगा इस वास्ते बुद्धिमान पुरुषकों पूर्वोक्त आठही वस्तुका मद करना यहा नही है. प्र. १६ जितने मनुष्य जैन धर्म पालते होवे तिन सर्व मनुष्यों को अपने भाइ समान मानना चाहिए के नही. जेकर भाइ समान मानेतो तिनके साथ खाने पीनेकी कुछ अम चल है के नही. उ. जितने मनुष्य जैन धर्म पालते होवे तिन सर्वके साथ अपने भाई करतांनी अधिक पियार करना चाहिए. यह कथन श्राद्ध दिनकृत्य ग्रंथ में है और तिनोकी जातीयां जेकर लोक व्यवहार अस्पश्य न होवें तदा तिनके साथ खाने पीनेकी जैन शास्त्रानुसार कुछ अडचल मालुम नही होती है क्योंकि जब श्री महावीरजीसें ७० वर्ष पीछे और श्री पार्श्वनाथजीके पीछे बडे पाट श्री रत्नप्रभ सूरिजीने जब मारवाडके श्रीमाल नगरसे जिस नगरीका नाम अब भिल्लमाल कहते है तिस नगरसे किसी कारण से भीमसेन राजेका पुत्र श्रीपुंज GOAGUAGOOGOAGAGAGVAGOAGOAGUAGOAGON Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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