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एक धर्म पर्वतके वन तथा | इस वन समान तापस १ नैयायिक, वैशेषिक, जंगली वन समान है, इस जैमनीय, सांख्य, वैभव आदि आश्रित सर्व वनमें थोहर, कंथेरी, कुमार लौकिक धर्म और चरक परिव्राजक इनके प्रमुखके फल देनेवाले वृक्ष विचित्रपणेसें विचित्र प्रकारका फल है सोइ है और कंटकादिसमें दिखाते है, कितनेक वेदोक्त महा यज्ञ, पशु विदारण करणे सें वध रूप स्नान होमादि करके धर्म मानते है, अनर्थकेभी जनक है १ और वे कंथेरी वनवत् है, परभवमें अनर्थरूप जिनका कि तनेक धव सल्लकी के प्राये फल होवेगा, और कितनेक तो तुरमणीश सुपलाश पनस सीसमादि दत्तराजाकी तरे निकेवल नरकादि फल वाले वृक्ष है, इनके फलतो होते है । तथाचोक्तं आरण्य के || येवैइहयथा निःसार है, परंतु विशिष्ट २ यज्ञेपुपशुन्विश संतितेतथा २ इत्यादि ।। अनर्थ जनक नही है २ और तथा शुकसंवादे || यूपं छित्त्वा , पशून् हत्वा, कितनेक वेरी खेजडी कृत्वा रुधिर कर्दमं , यद्येवं गम्यते स्वर्गे, नरके खयरादि निःसार अशुभ केन गम्यतेः ।।१।। स्कंधपुराणे ।। वृक्षां च्छिंत्वा, फल देते है कंटकों से पशून् हत्वा , कृत्वा रुधिर कर्दमं , दग्ध्वा वन्ही विदारणादि अनिष्टके तिलाज्यादि, चित्रं स्वर्गोभिलष्यते |१|| जनकभी होते है ३ और | कितनेक अपात्रकों अशुद्ध दान गायत्र्यादिके कितनेक किंपाकादि वृक्ष है. | जापादि धव पलाशादिवत् प्राय फलदेनेवालेभी मुख मीठे परिणाममें विरस सामग्री विशेष मिले किंचित् फल जनक है, फलगके देनेवाले है ४ परं अनर्थ जनक नही, विवक्षित है, इस स्थल कितनेक उडुबर (गूलर) में प्रतिदिन लक्ष दान देनेवाला मरके हाथी विल्वादि फल निःसार शुभ हूए सेतवत्, तथा दानशालादि कराने वाले फलवाले कंटकादिके नंदमणिकारवत् और सेचनक हाथीके जीव अभावसें अनर्थ जनक नही लक्ष भोजी ब्राह्मणवत् द्रष्टांत जानने ||२|| है ५ कितनेक नारिंग, कितनेक तो सावद्य (सपाप) अनुष्ठान, तप, जंबीर, करणादि मध्यम, नियम दानादि अन्याय से द्रव्यो पार्जन करी फलों के वृक्ष है, परंतु अनर्थ | कुपात्र दानादि वेरी खेजकीवत् किंचित् राज्यादि जनक नही है ६ कितनेक असार शुभ फल दुर्लभ बोधिपणा हीन जातित्व रायण (खिरणी) आंब, परिणाम विरसादि अनर्थभी देवे है, कौणिक प्रियंगु प्रमुख सरस शुभ पुष्प | पिछले नवमें तपस्वीवत् और जैनमति नाम
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