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लेनी, चूंच रगकनी और जानवरोंका रुधिर मांस, मलादि अशुचि आहारि होने से ३ ऐसे ही कितनेक गुरुयों में रूप १ उपदेश २ क्रिया ३ तीनोही नही है, अशुद्ध प्ररूपक संयम रहित पासने आदि जानने , सर्व परतीर्थीकभी इसी भंगमे जानने ।। इति आठमा गुरु स्वरूप भेद ||८||
इनमे से उपदेश सुनने योग्यायोग्य कौन है.
इन आठेही भांगोमें जो भंग क्रिया रहित (संयमरहित) है वे सर्व त्यागने योग्य है, और जो भंग सम्यक् क्रिया सहित है वे आदरने योग्य है, परंतु तिनमें भी जो उपदेश विकल अंग है वे स्वतारकभी है, तोभी परकों नही तारसक्ते है, और जे अंग अशुद्धोपदेशक है, वेतो अपनेकों और श्रोताकों संसार समुद्रमें डबोनेही वाले है, इस वास्ते सर्वथा त्यागने योग्य है, और शुद्धोपदेशक, क्रियावान् पक्ष कोकिलाके द्रष्टांत सूचित अंगीकार करने योग्य है, त्रीक योगवाला पक्ष तोते के द्रष्टांत सूचित सर्वसें उत्तम है । और शुद्ध प्ररूपक पासस्थादि चारोंके पास उपदेश सुननाभी शुद्ध गुरुके अभावसे अपवादमें सम्मत है.
प्र.१६०. इस जगतमें धर्म कितने प्रकारके और कैसी उपमासें जानने चाहिये.
उ. इस प्रश्नोत्तरका स्वरूप नीचेके लिखे यंत्रसें जानना धर्म पांच प्रकारका है।
एक धर्म कथेरीवन समान है, जैसें कंथेरी वन निष्फल है. सर्व प्रकारसें केवल कांटो करके व्याप्त होने से लोकांकों विदारणादि अनर्थ जनक होता है, और तिस वनमे प्रवेश निर्गमन भी दुष्कर है ||१||
इस वन समान नास्तिक मतियोंका माना हुआ धर्म है, सर्वथा थोडासाभी शुभ फल नही देता है, और परभव में नरकादि गतियोंमे दुःख अनर्थकों देता है, और इस लोक में लोक निंदा, धिक्कार नृप दंडादिके भयसें इस कुकर्मी नास्तिक मतमें प्रवेश करनां मुशकल है, और जो इंस मतमें प्रवेश कर गये है, तिनकों स्व इतानुसार मद्य मांसादि भक्षण मात, बहिन , बेटीकी अपेक्ष' रहित स्त्रीयोंसें भोगादि विषयके
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