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________________ हैं। यदि नसीब अच्छे होंगे तो कैसे भी पेट भर जाएगा।' पैसे खतरनाक लगने के बाद अन्याय कैसे ? झगड़े कैसे ? विश्वासघात कैसे ? मायादित्य की माया :- मायादित्य को पैसे खतरनाक नहीं लगे, इसीलिये स्थाणु के पांच रत्न देखकर कपट करने का मन हुआ। वह सोचने लगा कि 'स्थाणु अभी तो गया है, इसलिये उसके पांच रत्न मेरी गठरी में बांध ढुं और उसकी गठरी में कंकर बांध दुं । दोनों गठरी के बांधे हुए चीथड़े एक जैसे ही हैं। वह आयेगा, तब कंकर की गठरी उसे सौंप कर कोई भी बहाना निकालकर मैं १० रत्नों की गठरी लेकर चल पडुंगा ।' अब भला देर कैसी ? बाहर जाकर वह रत्नों के माप के पांच कंकर लाया । स्थाणु की गठरी में से पांच रत्न निकालकर उसमें पांच कंकर बांध दिये व स्वयं की गठरी में पांच रत्न बांध दिये । परन्तु इतने में तो स्थाणु को दरवाजे में प्रवेश करते देख वह घबरा गया । घबराहट व हड़बड़ी में वह भूल गया कि कंकर की गठरी कौन-सी है और रत्नों की गठरी कौन-सी है ? कंकरवाली गठरी उठाकर जल्दी से कमर पर बांध दी। उसका व्याकुल ! चेहरा देखकर स्थाणु ने पूछा- 'क्यों भाई, मुझे देखकर इतने घबरा क्यों गये ?' वह तो लुच्चा था, इसलिये कहने लगा, 'माफ करना, यह धन ही भय का कारण है। मुझे लगा, कोई चोर तो नहीं आया न ? इसीलिये मैं घबरा उठा ।' सरल हृदयी स्थाणु बोला, 'अरे भले आदमी ! इस तरह डरने की क्या आवश्यकता है ? स्वस्थ बनो, भगवान का नाम लो, कुछ नहीं होगा ।' तब कपटी मायादित्य बोला, 'भाई! तुम्हारी बात बिल्कुल सही है । परन्तु मुझे तो यह संपत्ति पास में होने से भय सताया करता है। एक काम करो, हम दोनों की रत्नों की गठरी तुम्हीं संभालो, जिससे मैं निश्चिन्त रह सकुं ।' ऐसा कहकर स्वयं के मन से जिसे कंकर की गठरी समझा था, वह दे दी। लेकिन वास्तव में हुआ ऐसा कि स्थाणु के अचानक आ जाने सेउतावल में मायादित्य गठरी को पहचान न पाया और भूल में सच्चे रत्नों की गठरी कंकर की गठरी मानकर स्थाणु को दे दी व कंकर की गठरी स्वयं छुपाकर रखी । पाप कहां तक साथ देता है ? कहीं न कहीं गफलत कराके वह भारी नुकशान में उतार देता है । कोर्ट में गवाही देने में गड़बड़ करनेवाला कहीं न कहीं तो पकडा ही जाता है । पडौसी को कोई चीज लाकर देने में गोलमाल करनेवाला एक दिन जरुर पकड़ा जाता है। दूसरों का माल हड़पनेवाले का पाप भी एक दिन अवश्य प्रगट होता है । अनीति का धन कुदरत छीन लेती है : मन को ऐसा ही लगता है कि 'ऐसे कोई पाप थोड़े ही प्रगट होता है ? सावधानी रखी जाय, तो न पाप प्रगट हो और न ही कोई नुकशान हो ।' परन्तु यह गणित गलत है । पाप उजागर होने के कई रास्ते हैं। यदि कोई माने कि, 'मैं किसीसे न कहुं, सगी पत्नी या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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