________________
संसारी को मान की विटंबना
:
I
महान रावण की ही क्या बात ? संसारी मात्र को देखें तो दिखाई देगा कि उसे किसी न किसी प्रकार का अभिमान पैदा होने पर अस्वस्थता आ खड़ी होती है। फिर वह न कहने योग्य कहता है - और उधम मचाता है । फलतः कुटुम्ब क्लेश के बीज रोपे जाते हैं । इसीलिए तो समझदार वडिलजन अभिमान को एक ओर रखकर कितना ही सह लेते हैं वरना अभिमान भला कुछ सहने दे ? और गम न खाए तो घर में कटकट किया करेगा और उस कटकट के कारण दूसरों को कितना क्लेश होगा ? अभिमान न हो तो संताप क्यों हो ? “मैं इतना धनवान हूँ। मैं ऐसा बुद्धिमान हूँ, मैं महान हूँ। मुझे तो ऐसा ऐसा चाहिए ही।' इस तरह सब बातों में अहं में ही लगा रहता है, और मानसिक विटंबना भोगता है। मान में खिंचने के कारण ही तो अनेक प्रकार के पाप करता है, कषायों का सेवन करता है, और संताप का अनुभव करता है ।
(२) अभिमान से धनसंपत्ति का नाश :
महर्षि कहते हैं - 'अभिमान न केवल संताप करानेवाला है अपितु धन का नाशक भी अवश्य है ।' घमंड में चढ कर सट्टा खेलने गये हुए कई सटोडिये बरबाद हो गये। पूछो
न
प्र. लेकिन वे तो लोभ की वजह से न ?
उ. वह लोभ भी किस लिए? दुनिया में अच्छे धनवान् के रुप में बड़प्पन पाने के लिए ही न ? 'मैं बडा लखपति बनूँ, करोडपति बनूँ, समाज में मेरा रोब - दबदबा हो, दूसरे लोग मेरी कदमबोसी करें, मुझे सलाम करें' - ऐसे घमंड के पाप के मारे ही धन के लोभ सट्टा करने जाता है और बरबाद होता है । इस तरह घमंड में पड कर, अच्छे दिखने के लिए खूब खर्च निभाने पडते हैं। एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा में उतरते हैं और संपत्ति का नाश होता है। जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर का बडप्पन चाहता है उसे भी ऐसे प्रयत्न करने में बरबादी सहनी पडती है । कोई अभिमान में जरुरत से ज्यादा बोलने गया और पुण्य यदि नहीं है तो सामने से चपत पडेगी । उसका सामना करने में भी कितना ही धन व्यय करेगा। घमंड के कारण कोर्ट अदालत में जाएगा। वहाँ भी कितना ही पैसा खोएगा, फिर भी पीछे मुडने का नाम नहीं। लड़ाई में पड कर मित्र, धन... यहाँ तक कि प्राण आदि को भी आघात लगाएगा। रावण तथा दूसरे भी प्रतिवासुदेव इसी तरह समाप्त हो गये । मान भयंकर है ।
(( ३ ) अभिमान ऐसे ही अपमान - अवगणना - पराजय का मूल है।
झगडा उठ खडा होने पर (१) नम्रता दिखानेवाला शांति करता है और (२) अभिमान दिखानेवाला झगडे के रुप को और बढा देता है, और उसमें पुण्य निर्बल होने से हारना पडता है। युद्धभूमि में घमंडी रावण को बाली के सामने हाथ जोड कर पैरों पडने की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org