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उसके गहरे प्रभावों को हलके बना रहा हूँ ?
यदि यह समझने में देर लगे तो फिर संसार के स्वार्थी, खोखले, अल्पजीवी और विश्वासघाती स्नेह-प्रेम- राग के प्रति तिरस्कार पैदा होने की तो बात ही कहाँ रही ? यदि ऐसा नहीं तो उसे छोड़ने के मनसूबे, अरमान और पुरुषार्थ कहाँ से होंगे ? पूछिये: प्र. स्नेह में दुर्दशा है यह कैसे समझा जाय ?
उ. समझा जाय; इस तरह समझा जाय
(१) पहली बात यह कि संसार का स्नेह जिनेश्वर देव एवं मुनि पर ऐसा स्नेह नहीं होने देगा, इसलिए वह झूठा है। देव गुरु पर प्रेम को रोकनेवाला ऐसा संसार के प्रति प्रेम दुर्दशा ही है ।
(२) स्नेही आप पर स्नेह करता है, इससे आप आकर्षित होते हैं और उसे स्नेही मानते हो, इसीलिए आपको ऐसा हृदयस्पर्शी अनुभव नही होता कि देवगुरु आपके स्नेही है और बार बार यह याद नहीं आता । फलतः देवगुरु के लिए ऐसा त्याग नहीं किया जाता । अतः दुनिया का स्नेह दुर्दशा है ।
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(३) प्रेम का प्रारंभ करने के पश्चात् उस प्रियजन के पीछे कितनी चिंता - संतापअशान्ति और दौडधूप आदि रहा करते हैं यह सूचित करता है कि प्रेम दुर्दशा है ।
(४) कितने भारी परिश्रम से पूर्वभवों के स्वयं के द्वारा उपार्जित करके लाए हुए पुण्य को स्नेह की खातिर व्यय कर देना पड़ता है, ऐसा यह स्नेह आत्मा की दुर्दशा नहीं है ? स्नेह न होता तो पुण्य व्यय करके मिला हुआ माल देवाधिदेव के चरणों में न रखते ? परोपकार में खर्च न करते ? बाज़ार में कमाई करके सोने की या मोती की कंठी मालाखरीद लाओ तो उसे किसके गले में पहनाने की इच्छा होती है ? गृहिणी के या प्रभु महावीर के ? कितना अन्याय ? पुण्य दिया धर्म ने, और अब उसका माल अर्पित करना धर्म को नहीं, बल्कि प्रेमपात्रों को?
(५) स्नेह के पीछे पापारंभों तथा अठारह पापस्थानकों का कितना भरपूर सेवन किया जाता है ? सारी ज़िन्दगी ! यह स्नेह क्या आत्मा की उन्नति है या अवनति ? दुर्दशा ? और भी देखिये -
(६) स्नेह नश्वर पर करते हो । फिर वह स्नेह-पात्र छूट जाने पर क्या स्थिति होगी ? आपको जब उसे छोड़ जाना पड़े तब क्या हालत ? प्रेमी टेढ़ा चले तब कैसी दशा ? देखो, मानभट की पत्नी ने क्या किया ? खुद ने प्रेम किया था इसलिए फाँसी खाने तक की नौबत आयी न ? और कोई उल्टा बोला होता तो क्या वह फाँसी खाती ? नहीं, जिससे प्रेम किया वह बेकदर लगा अतः फाँसी खाई । स्नेह का ही अनुगामी परिणाम विटंबना है न ? अब मानभट उसे फाँसी खायी हुई देखकर आकुल-व्याकुल है, तो स्नेह जीव की अच्छी दशा कही जाए या दुर्दशा ?
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