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-: संक्षिप्त कथा सार :
राजा पुरंदरदत्त को जैन धर्म की प्राप्ति कराने के लिये वासवमंत्री तरकीब आजमाकर उसे उद्यान में धर्मनन्दन आचार्य महाराज के पास ले जाता है 1 वासवमंत्री के प्रश्न पूछने पर आचार्य महाराज संसार के पांच कारण के रूप में क्रोध - मान-माया - लोभ-मोह को बताते हैं। क्रोध पर चंडसोम, मान पर मानभट्ट, माया पर मायादित्य, लोभ पर लोभदेव, व मोह पर मोहदत्त के जीवंत उदाहरण के साथ संसार की बेढंगी स्थिति का ऐसा अद्भुत वर्णन किया कि सहृदय श्रोता को संसार व उसके कारण क्रोधादि के प्रति खेद - ग्लानि पैदा हो जाय । वे पांचों दीक्षा ग्रहण करके परस्पर धर्मानुरागवाले एक ही देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न हुए। चंडसोम पद्मचंद्र देव के रूप में पैदा होता है । वहाँ परस्पर धर्मबोध करने का संकेत करते हैं ।
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एक बार दक्षिणार्ध भरत खंड के मध्य भाग में श्री धर्मनाथ भगवान के समवसरण में ये पांचों देव आये थे । उन्होंने परमात्मा से अपने भावि कल्याण के बारे में पूछा। वहाँ से च्यवन पाकर पद्मचंद्र देव (चंडसोम) का जीव सिंह बनता है, पद्मसार देव (मानभट्ट) का जीव कुवलयचंद्र कुमार, पद्मप्रभ (लोभदेव ) का जीव सागरदत्त व्यापारी, पद्मवर देव (मायादित्य) का जीव दक्षिण देश की विजयानगरी के राजा विजयसेन व रानी भानुमती की कुक्षी से कुवलयमाला के रूप में जन्म लेता है। उसे प्रतिबोध देने के लिये कुवलयकुमार विजयानगरी जाकर, पादपूर्ति करके कुवलयमाला के साथ शादी करता है । पद्मकेसर देव (मोहदत्त) का जीव कुवलयमाला के पुत्र पृथ्वीसार के रूप में जन्म लेता है।
कुवलयकुमार का अश्व के साथ दिव्य हरण होता है। कुमार अश्व के पेट में छुरा भोंकता है, इससे वह अश्व के साथ नीचे आता है, " कुमार कुवलयचंद्र ! दक्षिण दिशा में एक कोस दूर जा । वहाँ पहले कभी न देखा हो, ऐसा कुछ तुझे देखना है ।" कुमार वहाँ गया। वहाँ उसने एक मुनि को देखा। वे मुनि
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