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मुनि ने संसार छोडकर चारित्र लेने की बात क्यों बतायी ? इसीलिये कि
(१) मोहदत्त ने जिन पापों का सेवन किया है, वह गृह-वास के कारण ही। स्वयं संसारी था, इसीलिये वासना से वनदत्ता की ओर आकर्षित हुआ। साधु होता, तो शायद ऐसे विचार नहीं करता कि 'यह स्त्री कितनी सुन्दर है, कैसी जवान है...' ये विचार ही नहीं, तो 'इसको चाहनेवाला और भी कोई है, उसे मार डालूँ ,' यह विचार भी कहाँ से आयेगा? आप कहेंगे.
प्रश्न :- शायद प्रतिद्वंद्वी के रूप में विचार न हो, फिर भी स्त्री के शील की रक्षा के लिये तो दूसरे आदमी को मारने का विचार पैदा होता है न?
उत्तर :- क्यों भला? स्त्री के शील की रक्षा के लिये उसे रोकने का विचार आ सकता है, परन्तु मारने का विचार क्यों ? रोकते हुए शायद मर जाय, तो उसमें आशय मारने का नहीं, परन्तु शील-रक्षा का पवित्र आशय होने से उसे पापी नहीं कहा जाता । परन्तु यहाँ तो स्वयं की कामवासना ही काम कर रही थी, इसीलिये वह पापात्मा बना । इसमें मूल कारण है गृहवास ! गृहवास के कारण ही ऐसी पाप-बुद्धि जगी। इसीलिये गृह-वास का त्याग चाहिये।
(२) गृहवास में पाप बहुत हैं । गृहवास छोडे बिना पाप कहाँ से कटेंगे व घटेंगे?
कहिये, गृहवास में बैठे हैं, तो क्या-क्या नहीं करना पडता? संसार बसाया, संसारसुख भोगे, यह भूल तो हो गयी, अब पुत्र का जन्म हुआ, तो बोलो, वहाँ भी इतनी हिम्मत तत्वबुद्धि व इच्छा है कि ।
- 'संसार-सुख भोगने की भूल में जन्मे हुए पुत्र को घर-संसार न बसाने के लिये समझाऊँ ?'
क्या मन में ऐसा होता है कि 'गृहवास पाप-भरा है, ऐसा इसे समझाऊँ ? जन्म से इसके कान में यही बात किया करूँ कि 'संसार बुरा है' ! संसार-सुखों का सेवन करने के बाद भी ऐसी तत्वबुद्धि होती है?
प्रश्न :- परन्तु वहाँ तो लडके में स्वार्थ होता है न?
उत्तर :- तो इसका अर्थ यही है कि गृहवास चीज ही ऐसी है कि गंदी स्वार्थ-लीला के पाप कराता है। यह स्वार्थ-लीला गंदी क्यों ? पुत्र पूर्व में धर्म करके पुण्य लेकर आया है। उसे स्वयं के स्वार्थ में धर्म भुलाकर काम की होशियारी सिखायी जाती है। परलोक में उस लडके का क्या हाल होगा? बेहाल ही न ! क्या ऐसी स्वार्थ की लीला गंदी नहीं ? . गृहवास कौन-से याप नहीं करवाता?
(३) पत्नी है, इसलिये वर्ष में आधा वर्ष भी ब्रह्मचर्य नहीं; पत्नी जीवित है, इसलिये घर में बच्चे बडे होने के बाद भी ब्रह्मचर्य नहीं !
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