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________________ हक कहाँ रखा जाय ? स्नेही-स्वजन द्रोह करें, तब क्या विचार करना? दुनिया मुझसे नहीं, मेरे शुभोदय से बंधी है। हमारा शुभोदय हो, तभी तक दुनिया हमारी, स्नेहीजन हमारे ! यह विचार रहे, तो दुनिया पर हक रखने या आशा रखने का सवाल ही नहीं उठता । हक शुभोपार्जन पर रखा जा सकता है, आशा शुभ की रखी जा सकती है। पुत्र द्रोह करें, तब क्या विचार किया जाय ? माता-पिता पुत्र को अच्छी तरह से पाल-पोसकर बड़ा करते हैं। बाद में वही पुत्र जब पत्नी के मोह में ऐब दिखाता है, तो आशा-भरे मां-बाप को दुःख होता है कि 'अरे! पाल-पोसकर इतना बड़ा किया, इसका यह नतीजा? क्या हमें अनुकूल रहना इसकी फर्ज नहीं ?' यह दुःख क्यों ? पाल-पोसकर बड़ा किया, इसलिये उस पर हक जताते हैं कि इसे हमको अनुकूल होकर रहना चाहिये, हमें सुख देना चाहिये । परन्तु वहाँ यदि सोचने का नजरिया बदल दें, हक व आशा शुभोपार्जन की रखी जाय, तो पुत्र के कारण न दुःख होगा, न ही उसके प्रति द्वेष होगा। मन में ऐसा महसूस होगा कि 'यह पुत्र टेढ़ा चल रहा है, यह तो थर्मामीटर है। इससे मेरे शुभ की तंगी व अशुभ का बुखार सूचित होता है। थर्मामीटर में बुखार चढ़ा हुआ आये तो उसके लिये दुःख या थर्मामीटर के प्रति द्वेष नहीं करना चाहिये, बुखार को भगाने का प्रयत्न करना चाहिये । मैं भी अब शुभोपार्जन में जुट जाऊं। जीवन में चित्त की शान्ति टिकाये रखने के लिये व सुकृत का उल्लास जगाने के लिये दो महान चाबी हैं - (१) दुनिया में जो भी अच्छा होता है, वह शुभोदय पर आधारित है, (२) असुविधा-आपत्ति तो थर्मामीटर है। (१) जो कुछ भी अच्छा होता है, वह शुभोदय के कारण है, मन के कारण ' नहीं, यह विचार जीवन में कितनी राहत देता है ? जमाना बहुत बुरा है ... यही शोर आप मचाते हो न? याद रखिये, जमाना खराब नहीं, हमारे कर्म खराब उदय में हैं । इसलिये शुभ में अभिवृद्धि करो। बुरे वक्त में तो शुभोपार्जन ज्यादा करना चाहिये, धर्म बढ़ाना चाहिये। जमाने का बहाना बनाकर रात्रिभोजन, अभक्ष्य कंदमूल भक्षण, प्राणिजन्य दवाओं का सेवन, अनीति, झूठ आदि पाप, व्याख्यान, सामायिक, प्रतिक्रमणादि पवित्र धर्मक्रियायें छोडकर रेडियो, अखबार, क्लब, पिक्चर आदि पाप धडल्ले से चल रहे हैं। कैसा गलत रास्ता है ? सुवर्णदेवी के दो बच्चे बाघनी की झपट में आये, परन्तु उनका शुभोदय जागृत था, इसलिये बाघनी ने उन्हें तुरन्त खाया नहीं। दोनों को बांधी हुई गठरी उठाकर चली। लेकिन शुभोदय जागता होने से एक तरफ की गांठ ढीली पड़ने से बालिका नीचे गिर गयी । बाघिन को इसका पता भी न चला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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