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शक्ति नहीं ? यदि शक्ति नहीं है, तो उन्हें सर्वशक्तिसंपन्न माना, इसका अर्थ ही क्या?
कहने का तात्पर्य यही है कि मोहमूढ़ता से ऐसे देव या खुदा की कल्पना करके उनके नाम पर सिर्फ अपनी लालसा-लंपटता का पोषण होता है।
(मांसाहार क्यों गैरकानूनी है ?
'कुदरत ने बनाया, इसलिये खाया जा सकता है, भोगा जा सकता है',- यह भी कुदरत की बनावट की कल्पनामात्र है। ऐसी कुदरत जैसी कोई चीज ही नहीं. जो एक इन्सान की तरह सब कुछ इच्छा से बनाने बैठी हो। जीवों के कर्म ही ऐसे-ऐसे हैं, जो जीव के लिये ऐसे शरीर आदि बनाते हैं। फिर चाहे वह पशु-शरीर हो या कंदमूलरुप वनस्पतिशरीर हो ! प्रत्येक जीव के कर्म से उसे उस-उस प्रकार का शरीर मिला है, उस पर दूसरे जीव को क्या अधिकार है कि वह उसे खा सके? खुद के शरीर पर किसीको खाने का अधिकार नहीं, इसी प्रकार दूसरे के शरीर पर स्वयं को भी खाने का अधिकार कहाँ से हो? सारांश में, सब कुछ भक्ष्य नहीं, सब कुछ भोग्य नहीं, सब कुछ आचरणीय नहीं, यह वही समझ सकता है, जो मोहमूढ़ न हो।
धर्मनंदन आचार्य महाराज कहते हैं कि मोह ऐसा दोष है कि जो अगम्यगमन, अहिताचरण व अभक्ष्यभक्षण कराता है । जीव मूढ़ता से ऐसा सब करने जाता है, इसका परिणाम क्या? (१) कार्यविनाश, (२) मित्रविनाश, (३) सद्गतिनाश,-व (४) सर्वनाश.
(१) मोह से कार्यविनाश :- मोहमूढ़ इन्सान कुछ भी कार्य करने लगता है, तो ऐसा उल्टा कर बैठेगा कि इससे कार्य बनने के बदले बिगड़ेगा । कई व्यापारी व्यापार में मूढ़ता से ऐसा कुछ करके तबाह हो गये। कई शादीशुदा आदमी मूढ़ता के कारण शादी के बाद ऐसी कडवी जुबान व ऐसा धूल जैसा क्षुद्र स्वभाव रखते हैं, जिससे उनका दांपत्यजीवन कडवा बन जाता है। मोह-अविवेक अच्छा सूझने नहीं देता, वह उल्ट आचरण कराता है और परिणाम स्वरुप नुकशान व तबाही आकर उपस्थित हो जाती है।
कई बार मोहवश अनुचित कार्य हाथ में लिया हो और ऐसा लगे कि यह कार्य हो रहा है, परन्तु वास्तव में तो वह कार्य कार्य नहीं, परन्तु स्वयं का ही विनाश है। क्योंकि ऐसे कार्य से स्वयं को महा अनर्थ का भोग बनना पड़ता है। अतः मोह से कार्यविनाश ही कहलाता है।
(२-३-४) मोह से मित्रनाश...सर्वनाश इस प्रकार :
राजा कोणिक ने अपनी रानी पद्मावती के मोहवश होकर भाई हल्ल-विहल्ल के पास कुंडल व सेचनक हाथी की मांग की। हल्ल-विहल्ल ने कहा - "पिताजी के राज्य में से हिस्सा दो, तो हम ये चीजें देंगे।' कोणिक मोहवश विचार करता है कि 'राज्य तो मैंने मेरी शक्ति से पाया है। वह देकर कुंडल व हाथी क्यों लुं ? बल से लुंगा।' वहाँ सलामती न होने से हल्ल-विहल्ल अपने नानाजी चेडा महाराज के पास गये । कोणिक ने मोहवश बनकर
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