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तो क्या आप वह भी खाने लगोगे?
'बनाया है, इसलिये खाया जा सकता है, भोगा जा सकता है', यह भी कोई दलील है ? यह दलील करनेवाला क्या अपनी माता को भोगेगा? क्या दूसरों को अपने शरीर का मांस खाने देगा? अपनी पत्नी का सेवन करने देगा? अपने पैसे लूटने देगा? दूसरे को स्वयं के सामने झूठ बोलने देगा? अपने प्रति माया-द्रोह-विश्वासघात करने देगा? नहीं, वहाँ तो कहेगा कि 'मेरा मांस, मेरी स्त्री, मेरे पैसे, दूसरों के लिये भक्ष्य, सेव्य, ग्राह्य नहीं', तो फिर 'बनाया उतना खाया जा सकता है, लिया जा सकता है', यह दलील कहाँ रही?
अंतर में लालसा व मूढ़ता भरी है, यथेच्छ खान-पान आदि करने हैं, इसीलिये बेबुनियादी दलीलें करता है।
मियाभाई बकरीईद करते हैं, दलील ?
यह दलील करते हैं कि, 'खुदा को उसकी बलि देने से वह स्वर्ग में जाता है।' अरे भाई ! तो तेरे पुत्र की बलि क्यों नहीं देता? तब कहता है कि 'खुदा ने पुत्र का भोग तो मांगा था, परन्तु वह बलि देते हुए बीच में बकरा आ गया, इसीलिये बकरे की बलि दी और खुदा प्रसन्न हुआ।' इस दलील पर विचार कीजिये कि पहले तो यह खुदा ही कैसा? एक तरफ कहता है कि सब जीव खुदा का सर्जन है, सब जीव खुदा के पुत्र हैं, और दूसरी तरफ खुदा उसीकी बलि मांगता है ? बकरा बनाया भी खुदा ने और खुदा अपने पुत्र तुल्य बकरे की बलि से प्रसन्न होता है ! यह खुदा तो कैसा? क्या इसे एक अच्छा बाप भी माना जाय?'
देव अपने बच्चे जैसे पशु का भोग ले, तो एक अच्छे पिता से भी खराब नहीं ?
प्रसूति पायी हुई कुतिया को दूसरा कुछ खाने को न मिले, तो वह अपने नवजात पिल्ले को खाकर खुश होती है। क्या ऐसी माता अच्छी कही जाय? नहीं; इसी प्रकार अपनी संतान की बलि से प्रसन्न होनेवाला खुदा एक अच्छा पिता भी नहीं कहलाता, तो महापिता तो कहा ही कैसे जाय ? देवी-देवता को पशु की बलि दी जाती है, वे देवी-. देवता कैसे ? देवी-देवता जीवों के दयालु रक्षक होते हैं या बाघ-चीते की तरह क्रूर भक्षक होते हैं?
खुदा व देवी-देवता कल्पनामात्र हैं :
वास्तव में सही बात तो यह है कि खान-पानादि के लंपट मूढ़ जीवों ने ऐसे खुदा व देवी-देवता बनाये हैं। वे सिर्फ कल्पना के घोड़े हैं, कोई वास्तविकता नहीं, नहीं तो यदि सचमुच कोई ऐसे जीवभक्षी खुदा या देवता होते, तो वे महाशक्तिमान स्वयं ही जीवों को नहीं खा लेते ? इन्सान के द्वारा बलि क्यों दिलवाते ? क्या उनकी स्वयं की खाने की
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