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संक्षेप कर, (९) अहिंसादि महाव्रतों का निरतिचार पालन करते-करते आत्मा को उससे भावित कर दे। और अन्त में (१०) अनशन से इस शरीर का त्याग करके पंडित मरण साध । बस, इस तरह करने से एकदम काले पाप कर्मों का भी नाश होगा ।
कर्म किससे आते हैं और किससे टूटते हैं ?
आचार्य महाराज ने ये ऐसे उपाय बताये, जो कर्म बंधवानेवाले कारणों से एकदम विरुद्ध है । इसीलिये सहज है कि इन उपायों से कर्म नष्ट हो जायें । (१-२-३) लोभ, अभिमान व स्वार्थ-माया से कर्म बंधते हैं, तो लोभत्याग, गुरुविनय व सेवा से कर्म टूटते हैं। (४) मोह की बातों से कर्म बंधते हैं, तो शास्त्र- स्वाध्याय से कर्म टूटते हैं।
(५-६-७) कई बार खानपान, विगई रस व जितनी चीजें मिले, उतनी चीजें खाने की छूट के कारण आत्मा में कर्म का प्रवाह आता रहता है। इसके बजाय तप, रसत्याग व द्रव्य-संक्षेप से कर्म नष्ट होते जाते हैं।
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(८) बहुत बोलने से कर्म बंधते हैं, तो काउस्सग्गध्यान से कर्म टूटते हैं।
(९-१०) हिंसादि से व क्रोध की गर्मी से कर्म का लेप लगता है, जब कि अहिंसादि व क्षमा, उपशम, संलीनता, तप से कर्म का लेप निकलता जाता है । '
लोभदेव को दीक्षा :
आचार्य महाराज के द्वारा दर्शाया गया उपाय लोभदेव के हृदय में उतर गया, यह जानने से दिल नाच उठा, हृदय में शान्ति हुई कि 'चलो, मेरे भयंकर काले पाप भी इन उपायों से नष्ट होंगे !' बस, आचार्य महाराज के आगे इन उपायों की याचना की, और आचार्य भगवंत ने देखा कि 'अब इसके कषाय शान्त हुए हैं, इसीलिये चारित्र के योग्य हैं', अतः लोभदेव को दीक्षा दी। राजा पुरंदरदत्त व वासवमंत्री आदि तो देखकर चकित ही रह गये कि 'वाह ! क्रोध-मान- माया - लोभ के ज्वलंत उदाहरण बने हुए ये व्यक्ति एक ही देशना में संसार छोड़कर साधु बन रहे है । '
१९ मोह कषाय
परम उपकारी महाकवि आचार्य भगवंत श्री उद्योतनसूरिजी महाराज ने ही देवी के आदेश से प्रौढ़ प्राकृत भाषा में श्री कुवलयमाला चरित्र रचा, उसमें संसार के पांच कारणों में क्रोध - मान-माया - लोभ, इन चार कारणों पर जीवंत दृष्टान्त देकर संसार की बेहूदा स्थिति का वास्तविक वर्णन किया। अनंतानंत काल से संसार में भटकता हुआ जीव अपार दुःख व दुर्दशा का अनुभव कर रहा है। फिर भी ऐसे संसार के प्रति उसे अभाव नहीं होता, ग्लानि नहीं होती । आचार्य महाराज ने इन द्रष्टान्तों के द्वारा संसार के मलिन भावों का जो
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